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________________ १०६ अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ (५) धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति ( सटीक ) सरस्वतीव श्रीधर्म - लक्ष्मीजीयात् महत्तरा । सुवर्णलक्षजननी, प्रवीणा विधिसंयुता ॥१॥ उपकारीना ऋणने येन केन प्रकारेण प्रकटित करवुं ते हंमेशा सज्जनोनुं लक्षण रह्युं छे. ‘याकिनीमहत्तरासूनु' ए उपनामथी हरिभद्रसूरिजीए सा. याकिनीना, करुणावज्रायुधनाटकना रचयिता बालचन्द्रसूरिए 'धर्मपुत्र' ना विशेषणथी सा० रत्नश्रीजीना उपकारनुं जेम स्मरण कर्तुं तेमज उपरोक्त श्लोकना कर्ता ज्ञानसागरसूरिजीए पण विमलनाथचरित्रग्रन्थनी प्रशस्तिमां सा० धर्मलक्ष्मीना उपकारोने स्मरण करी आ श्लोक रच्यो हशे एम लागे छे. आ वातने पुष्ट करती अन्य एक नोंध मळे छे. ते धर्मलक्ष्मीमहत्तरास्तुति. (आ कृतिनी रचना पण ज्ञानसागरसूरि म.सा. नी होवानुं अमे मानीए छीए. कृतिना छेल्ला श्लोकमां वपरायेलो ‘ज्ञानादिरत्नाकर' शब्द ज्ञानसागर नामनो द्योतक छे.) प्रस्तुत कृतिमां कविश्री साध्वीजी भगवन्तना गुणोनुं वर्णन करे छे. श्लेषकाव्यो, चित्रकाव्यो, विविधभाषाओ, विविध छन्दोमां रचायेली लाक्षणिक कृति खरेखर साध्वीजीना विशिष्ट व्यक्तित्वनो परिचय आपती होय तेम जणाय छे. संस्कृतभाषामां के गुर्जर भाषामा अन्य कोई साध्वीजी माटे आवी कृति मळती होय तेवुं प्रायः ख्यालमां नथी. कृति सुन्दर छे. कर्ताए मूळ साथे विषमार्थ करी कृतिने समजवामां सुगमता करी आपी छे. २ प्रस्तुत कृतिओनी झेरोक्ष आपवा बदल निम्नोक्त संस्थानो आभार १. श्रीसुरेन्द्रनगर जैन संघ ज्ञानभण्डार २. आणंदजी कल्याणजी पेढीनो भण्डार लींबडी - ३. श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानभण्डार पाटण ४. श्रीतपोवन जैन ज्ञानभण्डार नवसारी ५. श्रीनेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सुरत १. कृतिनी अन्तिम पंक्ति 'भावस्येप्सितसम्पदं च सुपदं देयात्' परथी तो कृतिना कर्ता भावसागर होय एम जणाय छे. - सं. - २. श्लो. १४-टीकानी अन्तिम पंक्ति ' ० निश्चितिः प्राक्तनवृत्तौ ज्ञेया' जोतां आव मूळकारे पोते कर्यो होय एवं नथी जणातुं. -सं.
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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