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________________ ६६ . अनुसन्धान ५० (२) न करवा कह्यु. परंतु जुगारनो शोखीन पठाण साथे जुगार रम्यो ने कशुं ज न रहेता उधारमा दाव लगाव्यो अने हारे तो पोताना शरीर- सवाशेर मांस आपवानी शरत कबूल करी. जुगारी हार्यो ने सवाशेर मांस आपवा तैयार न थतां पठाण धंधूकानी दरबारी कोर्टमां लई गयो. रस्तामां तरस लागतां पीवानुं पाणी मागी खाटलामां बेठो ने अना भारथी खाटलामां ढबूरेलुं सवा महीनानुं छोकर मरी गयु. आथी छोकरानी मा पण फरियादमां जोडाइ. आगळ जता घोडावाळी अने पडतुं मूकवा जता वृद्धना आकस्मिक मोतनी घटना घटी. अने ते बे पण फरियादमां जोडाया. अन्ते साडा त्रण दिवसे, धोळकानी कोर्टमां पहोंच्या त्यारे, पनोती उतरी जतां जुगारीना पासा सवळा पड्या ने प्रधाने न्याय आप्यो : १. जुगारी सवाशेर मांस आपे ने पठाण तलवारथी कापी ले परंतु ओ रीते शरीरमांथी काढेलुं-कापेलुं मांस तलभार पण वधवू-घटवू न जोइओ. २. मृत बाळकनी माताने कहेवायुं के अणे छोकरुं पार्छ मेळववा जुगारी साथे रहेQ अने गर्भाधान करावी गुमावेलु सन्तान पार्छ मेळवद्यु. ३. घोडावाळाओ जीभथी घोडुं रोकवा कहेलुं अथी फरियाद करनारनी गुनेगार अवी जीभ कापवी अने घोडाने अपंग बनवानो गुनो करनार जुगारीनो हाथ कापवो. ४. मृत वृद्ध पुरुष (बाबासाहेब) पाछा मेळववा माटे दावेदार बधाओ वाराफरती सातमे माळथी जुगारीनी जेम कूदी पडवू, अम करतां जे बचे ते बाबासाहेब : चारे ये फरियाद पाछी खेंची लीधी अने दण्ड भरी दीधो. अहीं जोई शकाशे के 'जातककथा' तथा 'उपदेशपद'मां जे कथा छे ते ज वीसमी सदीनी भालकांठानी कण्ठपरम्परामां छे. पालि भाषानी जातककथामां मूळभूत तो पनोतीनी ज लोककथा लिखितरूपमां विशेषरूप पामी छे. नसीब वांका होय छे त्यारे तो भोमांथी पण भाला नीकळे छे, अनु ज आ दृष्टान्त छे. अटले ज कदाच 'उपदेश-पद'ना विवृत्तिकारे आ दृष्टान्तकथाना पात्रने "निर्भागी' ज कह्यो छे- अभागियानी ज आ कथा छे. करवा जाय छे ओ कोइ कहे अने अनुसरीने सवळु, पण भाग्यवश पडे बधुं ज अवळु ! आq थतां निर्दोषने दोषित ठरवू पडे छे, परंतु, कथानो उत्तरार्ध अने न्याय अपावे छे, खोटी फरियाद करनारने पाठ भणावे छे. आथी, पनोतीने कारणे के बदनसीबने कारणे जेने अकारण गुनेगार बनवू पडे छे तेने राजा के मन्त्री, चातुर्यथी न्याय Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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