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________________ मरमी सन्त आनन्दघन अने तेमने परम्परा प्राप्त जैन चिन्तनधारा नगीन जी. शाह विक्रमनी १७मी सदीना उत्तरार्धमां विद्यमान कवि, मर्मी, अवधू आनन्दघनजीओ रचेलां प्रथम २२ जिननां स्तवनो प्रसिद्ध छे. श्री मो. द. देसाईले खोळी पोते प्रसिद्ध करेला २३मा अने २४मा जिननां स्तवनो आनन्दघनजीना होवानी अने अमुक कारणे गोप्य रखायां होवानी सम्भावना ते स्वीकारे छे. आ बधां स्तवनोनी पाठशुद्धिनी समस्या पण खास नथी. परंतु पदोनी बाबतमां आवें नथी. आनन्दघनजीओ हिन्दीमां बहोतेर पदो रच्यां छे अने ते 'आनन्दघन बहोत्तरी' तरीके प्रसिद्ध छे. ७२ उपरांत बीजां तेमना नामे चडावायां छे अने तेमनां पदो तरीके १०७ पदो छपायां छे. तेमांथी तेमनां पदो कयां नथी तेनो निश्चय करी तेमने बाद करी तेमनां ज पदोने जुदा तारवीओ नहि अने ते बधां ज १०७ पदोने आधारे आनन्दघनजीनो आ विचार हतो अने आ भावना हती अम कहीओ तो आनन्दघनजीने बहु अन्याय थाय. अने आवं अत्यार सुधी थतुं आव्युं छे. पदोनी पाठशुद्धि पण अनेक स्थाने विचारणा मागे छे. लहियाओओ-खास करी गुजराती-हिन्दी न समजावाथी पोतानी भाषासमज प्रमाणे फेरफार करी नांख्या छे. तेथी, आनन्दघनजीना पदोनी समीक्षित शुद्ध आवृत्तिनी खास जरूर छे. आ कार्यमां श्री मो.द. देसाईनो लेख 'अध्यात्मी श्री आनन्दघन अने यशोविजय' अत्यन्त उपयोगी सिद्ध थशे. आ लेख वांच्यो त्यारे ज जाण्यु के आनन्दघनजी, मनातुं अत्यन्त प्रसिद्ध पद 'अब हम अमर भये न मरेंगे' तो आग्रावासी कवि द्यानतराय (जन्म सं. १७३३)नुं छे. आनन्दघनजी मरमी सन्त छ, तत्त्वचिन्तक नथी. तेथी तेमनु कथन अन्तर्दृष्टि, आन्तर प्रतिभा, अन्तःप्रज्ञा, intuition मांथी स्फुरेलुं छे, ते बुद्धिना पृथक्करण, विश्लेषणमांथी उपजेलुं नथी. ते आत्मानुभव उपर भार दे छे, बुद्धिचिन्तन उपर नहि. ते तर्कविचार अने वादनी तरफेण करता नथी. "तर्कविचारे रे वादपरम्परा रे, पार न पहुंचे कोय.' अटले ते 'घट अन्तर' परखवा, 'अन्तर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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