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________________ ३२ अनुसन्धान ५० (२) (८) गुरु गीतम् (गुहंलड़ी मनरंगइ गावउ-एहनी ढाल) श्रीजिनसागरसूरि आचारिज चालउ सखी गुरुवन्दण कारिज |श्री० १॥ चालउ मोती चउक पुरावउं सूहव नारि मोतीयडे वधावउ ॥श्री० २।। अमृतवाणि सुणि सुख पावउ, मंगल गीत मधुर-सरी गावउ ॥श्री० ३॥ बोथरां वंसइ सोह चडावइ, वलिय पिता वच्छराज मल्हावइ ॥श्री० ४॥ मिरघां माता उरि अवतारा, लघुवय लीछउ संयमभारा ॥श्री० ५॥ श्रीजिनसिंहसूरीसरसीस सोहइ लक्षण अंगि बत्रीस ॥श्री० ६।। संवत् सोल चिमोत्तर वरसे, फागुण सुदी सातमि बहु हरखे ॥श्री० ७॥ पद ठवण मेड़ता माहीं कीधउ संघवी आसकरण सोभाग लीधउ ॥श्री० ८॥ उत्कृष्टी किरिया खपकारी श्री आचारिज बाल-ब्रह्मचारी ॥श्री० ९॥ सुन्दर रूप अनइं सोभागी आचारिज महावय सागी ॥श्री० १०॥ दरिसण दीठा आणन्द थायइ वाचक हरखनन्दण गुण गायइ !|श्री० ११॥ इति श्री गुरु गीताम् (९) गुरु गीतम् (वीर वखाणी राणी चेलणाजी-एहनी ढाल) जिनसागरसूरि चिर जयउ जी, आचारिज अणगार । कठिन किरिया तप जप करइजी, गच्छ खरतर सिणगार |जिन० १॥ धुर थकी सुजस सोभा घणीजी, लाइक कहता सहु लोग । जिणचन्द्रसूरि पणि काउ हूँतउ जी जेहनइ पाटनउ जोग |जिन० २॥ खरतर संघ सहु दीपतउजी मेडतई सबक.............. । ........... संघवी सलजी, आसकर्ण अवसर जाण ॥ जिन० ३॥ सुन्दर रूप सोहामणाजी, सूत्र सिद्धान्त मु........... । .......... गुरु भलाजी, सुललित सरस वखाण |जिन० ४॥ तात वच्छराज माता मृगांजी, जिनसिंहसूरिसीस । हरखनन्दण कहइ हरखसुंजी, प्रतपज्यो कोडि वरीस जिन० ५।। - इति गीतम् १. वस्तुतः यहा क्रमांक ६ होना चाहिए | - शी. __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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