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________________ अनुसन्धान ५० (२) अंग सुनाये । शाह कुशला ने मिश्री सहित रुपयों की लाहण की । लौद्रवा जी में थाहरू साह ने स्वधर्मी-वात्सल्यादि में प्रचुर द्रव्य व्यय किया । श्रीजिनसागरसूरिजी फलौदी पधारे, श्रावक माने ने प्रवेशोत्सव किया। करणुजा होते हुए बीकानेर पधारे । पाताजी ने संघ सह प्रवेशोत्सव किया । मंत्री कर्मचन्द के पुत्र मनोहरदास आदि सामहिये में पधारे । लूणकरणसर चतुर्मास कर जालपसर पधारे, मंत्री भगवंतदास ने उत्सव सह वंदन किया। डीडवाणा, सुरपुर, मालपुर जाकर बीलाड़ा में चौमासा किया, कटारियों ने उत्सव किया । मेड़ता में गोलछा रायमल के पुत्र अमीपाल-नेतसिंह व पौत्र राजसिंह ने नन्दिस्थापन कर व्रतोच्चारण किये । फिर राजपुर-कुंभलमेर होते हुए उदयपुर पधारे । मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के पुत्र लक्ष्मीचन्द के पुत्र रामचन्द्र, रुघनाथ ने दादी अजायबदे के साथ वंदन किया । फिर स्वर्णगिरि होते हुए सांचौर गए । हाथीशाह ने साग्रह चातुर्मास कराया । सं० १६८६ में पारस्परिक मनोमालिन्य से दोनों शाखाएँ भिन्न-भिन्न हो गई । जिनसागरसूरि की 'आचारजीया' शाखा में उ० समयसुन्दरजी का सम्पूर्ण शिष्य परिवार और पुण्यप्रधानादि युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजी के सभी शिष्य मिल गये । तथा अनेक नगरों का संघ जिनसागरसूरिजी को मानने लगा। मुख्य श्रावक समुदाय के धर्मकृत्य इस प्रकार हैं - करमसी शाह संवत्सरी को महम्मदी मुद्रा, उनका पुत्र लालचन्द श्रीफल की प्रभावना करता । माता धनादे ने उपाश्रय का जीर्णोद्धार कराया। भार्या कपूरदे ने धर्मकार्यों में प्रचुर द्रव्यव्यय किया । शाह शान्तिदास, कपूरचन्द ने स्वर्ण के वेलिये देकर ढाई हजार खर्च किया । उनकी माता मानबाई ने उपाश्रय के एक खण्ड का जीर्णोद्धार कराया । प्रत्येक वर्ष चौमासी (आषाढ़) के पौषधोपवासी श्रावकों को पोषण करने का वचन दिया । शा० मनजी के कुटुम्ब में उदयकरण, हाथी जेठमल, सोमजी मुख्य थे। हाथीशाह के पुत्र धनजी भी सुयश-पात्र थे । मूलजी, संघजी पुत्र वीरजी एवं परीख सोनपाल ने २४ पाक्षिकों को भोजन कराया । आचार्यश्री की आज्ञा में परीख चन्द्रभाण, लालू, अमरसी, सं० कचरमल्ल, परीख अखा, बाछड़ा देवकर्ण, शाह गुणराज के पुत्र रायचन्द, गुलालचन्द आदि राजनगर का संघ तथा खंभात के Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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