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________________ मार्च २०१० २४५ पाटण और श्रीजिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डारों आदि को सुरक्षित और सुव्यवस्थित कर युगानुसार सूचीबद्ध करना, फोटोकॉपी करना, रील बनाना और उसके सूचीपत्र को प्रकाशित करना भी ये अपना कर्तव्य समझते थे । इसीलिए जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार जैसलमेर का विस्तृत सूचीपत्र भी इन्होंने प्रकाशित करवाया, जो कि विद्वज्जनोपयोगी भी सिद्ध हुआ । जैसलमेर भण्डार के कार्य को पूर्ण करने के हेतु ही अग्रिम चातुर्मास इनका जैसलमेर में ही था । किन्तु यह विधि को मंजुर नहीं था । ऐसे प्रवर आगमज्ञ और सम्पादनकलाविशेषज्ञ का क्रूर यमराज के चंगुल में फँसकर चले जाना, आगम साहित्य के क्षेत्र के अपूर्ण कार्य को छोड़ जाना वस्तुत हृदय को गहन चोट पहुंचाता है । दूर-दूर तक दृष्टि फैलाने पर भी इनका समकक्ष कोई भी नजर नहीं आता । अन्त में भवभूति के शब्दों में 'कालो ह्ययं निरवधिविपुला च पृथ्वी' की उक्ति को समक्ष रखते हुए मन मसोस कर उनको श्रद्धाञ्जलि देना मात्र अभीष्ट है । वे जहाँ भी गये होंगे, उन्नत स्थान पर ही गये होंगे और भविष्य में भी जन्म लेकर अपने कार्य को पूर्ण करेंगे। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे । - जयपुर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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