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________________ २४२ अनुसन्धान ५० (२) मान्यताओ अंगे तेमनो अभिप्राय भिन्न पडतो हतो. तेओश्री साथेना अक वार्तालापमां में भूगोळ-खगोळना विषयमां शास्त्रीय अने वैज्ञानिक मान्यताना सन्दर्भे पूछेलुं त्यारे तेमणे सहज रीते उत्तर आपेलो के आ बाबत फेरविचारणा मागे छे. आगमोना वृत्तिकारोने केटलाक आगमगत शब्दोना अर्थघटनमां मुश्केली पडी छे ते अंगे पूछतां तेमणे कहेलु के वच्चेना समयगाळामां आम्नाय क्यांक छूटी गयो छे तेथी आम थयुं छे. ओवा शब्दोमांथी अमुक शब्दो त्रिपिटकोमां पण छे अने तेनी अट्ठकथा(टीका)ओमां तेना प्राचीन अर्थ सचवाया छे. आथी आगमोना अभ्यासीओओ पालि भाषानो पण लाभ लेवो जोईओ. पूज्यश्रीजम्बूविजयजी महाराज श्रुतधर परम्पराना अक उज्ज्वल नक्षत्र हता. ८७ वर्षनी परिपक्ववये पण तेओश्री कलाको सुधी हस्तप्रतो, वांचन करता. महिने महिने अट्ठमनो तप करता. जैन विद्याना अभ्यासी देशी-विदेशी विद्यार्थीओने मार्गदर्शन आपता. विहार, जीवदयानी प्रवृत्ति, शिष्योनुं अध्यापन, कलाको सुधी जाप, विविध भाषाओनो निरन्तर नूतन अभ्यास, ज्ञान-भण्डारोनो उद्धार, कम्प्यूटरीकरण - आवी विविध कामगीरी अप्रभत्तभावे अन्तिम क्षण सुधी करनारा पूज्य श्रुतस्थविर मुनिप्रवर अेक अनाडी माणसनी भूलनो भोग बनी अदृश्य थया. ओक कर्मठ, तपस्वी, श्रुतस्थविर प्रतिभा संघ पासेथी क्षणवारमां छीनवाई गई. विधिनी वक्रतानुं जाणे प्रत्यक्ष निदर्शन ! - पूज्यश्रीना मुखे सांभळ्युं हतुं : हवे तो बोनसनां वर्षों छे. थाय अटलुं करी लेवु छे. अने अक्षरशः ओ ज रीते छेल्लां थोडां वर्षो तेओश्रीधे गाळ्यां. पूज्य महाराज साहेब पुरुषार्थसभर, ज्ञानसाधनासभर, परोपकारसभर जीवन जीवी स्वनामधन्य बनी गया छे. दुर्घटना असह्य छ, किन्तु तेओश्रीने आथी कोई हानि नथी थई, संघने थइ छे. अमनां अधूरां रहेला अने वाट जोई रहेला अनेक कार्यो हवे कोण करशे जे प्रश्न छे. पूज्य श्रुतस्थविर श्रमणश्रेष्ठना जीवन अने कार्यमांथी प्रेरणा लई श्रमणसंघनो ओक टको श्रमणवर्ग पण संशोधननिष्ठा केळवे अने आ दीर्घ परिश्रमसाध्य क्षेत्रने पोताना समय-शक्ति अर्पण करवा पसंद करे तो ज श्रुतधरोनी परम्परा प्रवर्तमान रही शके. इच्छीओ के आवं कंईक बने. *** Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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