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मार्च २०१०
आगे आगे कवले, पीछे हरिया होय बलिहारी इण दरखतनी, जड काटयां फल होय जड काटूं तो पांगरे, सीचू तो कुमलाय हे गुणवंती वेलडी, तारा गुण तो कह्यो न जाय गूपत बात छानी रहे, कोई नर भेद न पावे असा साजन को नहि, लालन प्रीती मिलावे
निडो न दीसे पारधी, लगे न दीसे बाण हूं तोने पूछें हे सखी !, कीण विध तज्या पराण जल थोडो नेहा घणा, लगे प्रीत के बाण तूं पी तूं पी कर मूये, इण विध तज्या पराण
नदी अनेक वन वन घणो, बीच बीच पडे पहाड में तुज पूछें हे सखी !, कीन कर कीयो शीणगार आज चन्द्रमा दूज को, शशि चितवत चिंहु ओर मेरे आ दीर्घ लाल को, नेत्र भमे हे कठोर
तूम तो समुद्र समान हो, चीडीया सम हम होय चीडीया चांच डूबोय सो, समुंदर खाली न होय मित्र में जाणी प्रीत गइ, दूर वसतें वास युग्दल बीच अन्तर भयो, पण जीव तमारे पास
सो सज्यन हजार मित्र, मीजलख मित्र अनेक जीन सज्यन से दु:ख करे, वो लाखन में अक धन देइ तन राखीओ, तन देइ रखीओ लाज तन धन दोनुं खरचीओ, ओक प्रीत के काज
तन कोमल मधुरी गीरा, दीसे प्रगट प्रसीद्ध तो कठणाइ अवडी, हिये कहांथी लीध वीसवासी कीधी प्रीतडी, हवे दीखावो छेह अ पातीक कीहां छूटसो, हिये विचारो अह
मूझ सुं कांइ थोडे गून्हे, नेह विणा सो कन्त गोद बिठाइ ने कहुं, मत ल्यो अबला अन्त
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