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मार्च २०१०
पान पदारथ नाम संचरे, त्यु पीड, जो र
नदीयां वहे उतावली, जलहर पाखर केल पातशाहीका मामील्या, दरिया ओ का खेल
सज्यन असा कीजिये, जेसा नीबू बाग
देख्या पीण चाख्या नही, रह्या उमाला लाग हंसा ने सरोवर घणा, पूष्प घणा अलि राया सा पुरुषाने सज्यन घणा, देश विदेशे जाया
कुंभल मेर कटारगढ, पाणी अवले फेर
सोइ कहे जो साजना, वश कुंभल भेर पान पदारथ सुगण नर, अण तोल्या बिकाय ज्युं ज्युं पर भोमे संचरे, त्युं त्युं मोल मोंघा थाय
सर तर अखर शीख पीउ, जो रखेआ पाण
सर वेरी तरु सायरा, अखर राज दीवाण सज्यन असा कीजिये, जेसा रेशम रंग धमलि (धम सूली) शीख कांगरे, तोही न छोडे संग
फूल फूल भमरो रमे, चंपे भमर न जाय
भमरो चाहे केतकी, बंध्यो कमल सोहाय जीहां लग मेरु अडोल हे, जीहां लग शशीहर सूर तीहां लग सज्यन सदा, जो रहे गूण भरपूर
शशि चकोर, सूरज कमल, चातक घन की आश
प्राण हमारो वसत हे, सदा तमारे पास मन मोती तन मूंगीया, जय माला जगनाथ जीहां परमेसर पाधरा, तिहां नवनीध पर हाथ
गर हरीयो घन गाजीयो, मेडी उपर मेह
वीज पडे ते साजना, जे कर तोडे नेह जा के दस दुशमन नही, सेना नही पचास ता की जननि युं जण्या, भार मुंइ दस मास
सज्यन असा कीजिये, जेसा टंकन खार आप तपे पर रीझवे, भांग्या सांधणहार
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