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________________ १२८ अनुसन्धान ५० (२) इन एकादश प्रतिमाओं का विवेचन उपासकदशा सूत्र में वर्णित का ही इसमें विस्तार से निदर्शन है । अन्त में लिखा है कि ११वीं प्रतिमाधारक गृही भी मुक्ति पद को प्राप्त करता है । १२वी प्रतिमा तो युगप्रधान योगी पुरुष ही वहन करते हैं। चतुर्थ अध्याय - इस अध्याय में जीव के बन्ध-मोक्ष का विवेचन करते हुए ग्रन्थिभेद के पश्चात् सम्यक्त्व प्राप्ति से लेकर सयोगी केवली एवं अयोगी केवली पर्यन्त का विस्तृत वर्णन है । यह सारा वर्णन पूर्वाचार्यों द्वारा रचित साहित्य में प्राप्त होता ही है । इसमें सयोगी केवली को जीवनमुक्त चारित्रयोगी शब्द से भी अभिहित किया है। पाँचवां अध्याय - यह नव गद्य सूत्रों में है। इसमें कहा गया है कि तीर्थंकरों एवं केवलियों के अभाव में सर्वज्ञकल्प श्रुतकेवली युगप्रधान ही धर्मपथ का संचालन करता है। महावीर के २१ हजार वर्ष के शासन में सुधर्मस्वामीजी से लेकर दुप्पसह पर्यन्त दो हजार चार युगप्रधानाचार्य होंगे । तत्पश्चात् धर्म की महती हानि होगी और इसी बीच अविद्या और असत्य का बोल-बाला होगा। तत्पश्चात् आगामी उत्सर्पिणी में पद्मनाभ तीर्थंकर होंगे । उनके समय में पुनः सुसाधु होंगे जो शास्त्र-सम्मत साध्वाचार का पालन करेंगे । ३६ गुण युक्त होंगे। ४७ दोष रहित आहार ग्रहण करेंगे और युगप्रधान पद को धारण करने वाले सर्वज्ञ तुल्य होंगे । (४) - भगवान् महावीर के कुछ समय पश्चात् केवलियों का अभाव होने से परिहार-विशुद्धि आदि चारित्रों का अभाव हो जाएगा । श्रुत ज्ञान की क्रमशः क्षीणता को देखकर आर्य धर्म की रक्षा हेतु युगप्रधान आर्यरक्षित चारों अनुयोगों को पृथक्-पृथक् करेंगे । कई महामुनि सिन्धु-गंगा के मध्य भाग को छोड़कर अन्य दिशा-विदिशाओं में चले जायेंगे और पुनः इधर नहीं आयेंगे । सिन्धुगंगा के मध्य में रहने वाले श्रुतधर आचार्य महान् तपश्चर्या करेंगे और धर्मोद्योत करेंगे। कषायवैरि मुनिगणों से चान्द्रकुल का आविर्भाव होगा । श्रमणोपासकों को ऐसे ही युगप्रधान, श्रुत, कोविद आचार्यों की उपासना करनी चाहिए । द्वादशांगी आदि विद्याओं को जानकर जो इसके अनुसार आचरण करते हैं वे विद्वान् विरक्ततम होकर सुधासागर को प्राप्त करते हैं । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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