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________________ आर्षभी विद्या : परिचय म. विनयसागर इस अवसर्पिणी के प्रथम नृपति, प्रथम अनगार, प्रथम केवली और प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव हुए । आवश्यकचूर्णि, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति और कल्पसूत्र में इनके लिए 'अरहा कोसलिए उसभे' विशेषण प्राप्त होता है। भागवत पुराण में इन्हें महायोगिराट् कहा गया है। भगवान् ऋषभ जीवन-व्यवहार की समस्त कलाओं के प्रवर्तक माने गये हैं। वे वंशस्थापन, कृषि, कुम्भकार, पाककला, विवाह, लेखन, युद्ध, शस्त्र, राजनीति से लेकर मुनिवृत्ति और आत्मसाधना के मार्गदर्शक रहे हैं । प्रभु ऋषभ ने केवली बनने के पश्चात क्या देशना दी थी ? किन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया था ? समय का दीर्घकालीन व्यवधान होने के कारण उसका कोई स्वरूप प्राप्त नहीं होता है। हाँ, अहिंसादि सार्वभौम सिद्धान्तों का परिष्कृत स्वरूप अन्तिम तीर्थंकर महावीर की देशना/सिद्धान्तों में अवश्य लक्षित होता है। ____ कहा जाता है कि ऋषभपुत्र भरतचक्री षट्खण्ड विजय कर स्वराज्य में लौटे तो चक्ररत्न ने आयुधशाला में प्रवेश नहीं किया । कारण खोजने पर यह अनुमान किया गया कि 'षटखण्ड विजय के पश्चात् भी स्वयं के ९९ लघुभ्राताओं ने अधीनता स्वीकार नहीं की है, वह अपेक्षित है ।' भरत ने समस्त भाइयों के पास अधीनता स्वीकृति हेतु राजदूत भेजे । ९८ भाइयों ने विचारविमर्श करने के पश्चात् अपने पिता ऋषभ से निर्देश प्राप्त करने हेतु उनकी सेवा में उपस्थित होकर समयानुरूप निर्णय देने का अनुरोध किया । प्रभु ऋषभ ने संसार और राज्यवैभव की नश्वरता का प्रतिपादन करते हुए उन्हें बोधमय देशना दी। इस देशना से प्रतिबुद्ध होकर ९८ भाइयों ने अपने पिता भगवान् के चरणों में प्रव्रज्या ग्रहण की । प्रभु ऋषभ की उक्त देशना द्वितीय अंग सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के द्वितीय वैतालीय नामक अध्ययन में भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट है । भाषाविदों की दृष्टि से इस अंग की भाषा चौवीस सौ वर्ष प्राचीन है। इसी परम्परा में आदिनाथ-देशना (प्राकृत) और युगादि-देशना (संस्कृत) प्राप्त है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520551
Book TitleAnusandhan 2010 03 SrNo 50 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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