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गूढार्थ दोहाओ अने अन्य सामग्री : परम्परागत लोकवारसानुं जतन
सं. डॉ. निरंजन राज्यगुरु
आपणा प्राचीन कण्ठस्थ परम्पराना गुजराती साहित्यमां सुभाषितो, लोकोक्ति, उखाणां, प्रहेलिका, समस्या अने गूढार्थ उक्तिओनी ओक सुविशाळ परम्परा नजरे चडे छे. लोकजीवनमां वातवातमां वातडाह्या चतुर माणसो नवराशना समये आवो वाङ्मय भण्डार पीरसता रहे, लोककण्ठे आवुं साहित्य सैकाओ सुधी सचवातुं - जळवातुं - तरतुं रहे अने अमांथी जरूरत पड्ये प्रशिष्ट साहित्यना जैन - जैनेतर सर्जक - कवि - आख्यानकारो पोतानी रचनाओमां आवी उक्तिओने वणी ले. मध्यकालीन गुजराती साहित्यना क्षेत्रमां कोपीराइट के पोताना आगवा मौलिक सर्जन जेवा संकुचित खयालो ज नहोता. ज्यांथी कंइपण सारं लागे तेनो पोताना साहित्यमां समावेश करीने पोतानी रचनाओ लोकोना आत्मकल्याण अने लोकमनोरंजन माटे प्रयोजवानी परिपाटी आपणने व्यापक
ते फैलायेली जोवा मळे. संस्कृत साहित्य, प्राकृत के अपभ्रंश साहित्य, अन्य भारतीय भाषाओना साहित्य के कण्ठस्थ परम्पराना लोकसाहित्यमांथी आवी उक्तिओ लइने अनुं पोतानी भाषामा रूपान्तर करीने- गुजरातीकरण करीने पोताना गद्य-पद्य सर्जनने वधु सघन बनाववानो यत्न आपणा दरेक मध्यकालीन सर्जके कर्यो छे.
गुजरातना हस्तप्रतभण्डारोमां 'सुभाषितरत्नभाण्डागार' जेवी संकलन पामेली अनेक हस्तप्रतो पण मळी आवे छे, जेमां उपर जणाव्युं तेवी सामग्री गुजराती भाषामा रूपान्तर करीने संकलित करवामां आवी होय. अलबत्त जूनी गुजराती ओटले मध्यकाळमां सम्पूर्ण भारतमां व्याप्त ओवी सधुक्कडी भाषा. जे खास करीने उत्तर, पूर्व अने पश्चिम भारतमां व्यापक रीते फेलायेली जोवा मळे छे. अ समयना सर्जकोनी से राष्ट्रीय भाषा हती. जेथी समग्र भारत वर्षना सन्त-भक्त-कवि सर्जको पोतपोतानी स्थानीय - प्रान्तीय भाषा-बोली साथै अनुसन्धान जाळवीने आ सधुक्कडी भाषामां सर्जन करता हता. अने अ रीते विविध
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