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अनुसन्धान ५० (२) के साथ बलराम को इसी रूप में अंकित किया जाता है। आर्यकण्ह का उल्लेख कल्पसूत्र पट्टावली के साथ-साथ आवश्यकभाष्य में विस्तार से मिलता है। वस्त्र के प्रश्न को लेकर उनका शिवभूति से जो विवाद हुआ था, वह भी सर्वज्ञात हैं। यहां मैं उस चर्चा में नहीं जाउगा । यहाँ हमारा विवेच्य तो 'आर्यावती' की पहचान ही है।
सरस्वती प्रतिमा और इन दोनों फलकों में एक बात विशेष रूप से चिन्तनीय है कि इन दोनों फलकों और सरस्वती की प्रतिमा में गृहस्थ को ही हाथ जोड़े हुए मुद्रा में दिखाए गए हैं, मुनि को नहीं । मुनि मात्र अपनी उपधि (सामग्री) के साथ स्थित है।
फलक दो का जो अभिलेख है, उसका वाचन इस रूप में हुआ है :
सिद्धम् । सं. ९५ के ग्रीष्म ऋतु के द्वितीय मास के १८ वे दिन (सम्भवतः शक संवत ९५ के वैशाख शुक्ल तृतीया या अक्षयतृतीया को) कोट्टियगण, स्थानिककुल, वैरा शाखा की आर्य अर्हत् (दिन्न) की शिष्या, गृहदत्त की पुत्री एवं धनहस्तिश्रेष्ठी की पत्नी द्वारा (विद्या)
दान ।
इस फलक में देवी और श्रमण के बीच बड़े अक्षरों में 'कण्ह' शब्द यही सूचित करता है कि यह अंकन आर्यकण्ह का है । किन्तु देवी अंकन के समीप 'विद्या' का अंकन कहीं यह तो नहीं बताता है - यह 'विद्या' का अंकन है।
इस प्रकार आर्यावती, विद्या एवं सरस्वती - ये तीनों पृथक्-पृथक् हैं या किसी एक के सूचक पर्यायवाची नाम हैं, यह विचारणीय है। कहीं आर्यावती, विद्या और सरस्वती एक तो नहीं है ?
इस सम्बन्ध में प्रारम्भ में तो मैं स्वयं भी अस्पष्ट ही था, किन्तु संयोग से मुझे प्रभाशंकर-सोमपुरा की कृति भारतीय शिल्प संहिता के कुछ जिराक्स पृष्ठ प्राप्त हुए, जिसके पृष्ठ १४० पर सरस्वती के (१२) बारह पर्यायवाची नामों का उल्लेख मिला । इसमें सरस्वती के निम्न १२ पर्यायवाची नामों का उल्लेख किया गया है - १. महाविद्या, २. महावाणी, ३. महाभारती, ४. आर्या, ५.
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