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अनुसन्धान ५० (२)
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प्रथम फलक
प्रस्तुत चित्र में 'आर्यावती' मध्य भाग में खड़ी हुई, उसका एक हाथ वरद मुद्रा में है और दूसरा हाथ कमर पर है। उसके एक ओर एक चवरधारिणी स्त्री खड़ी हुई है, और दूसरी ओर दो स्त्रियां खड़ी हुई हैं। उनमें प्रथम के हाथ में छत्रदण्ड है और दूसरी के हाथों में माला है । आर्यावती के कमर के नीचे के भाग में एक बालक या पुरुष खड़ा हुआ दिखाया गया है, जो दोनों हाथ जोड़े
हुए नमस्कार की मुद्रा में स्थित है । इस फलक के उपर जो अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है, उसे निम्न रूप में पढ़ा गया है -
अर्हत् वर्धमान को नमस्कार हो । स्वामी महाक्षत्रप सोडास संवत्सर बयालीस के हेमन्त ऋतु के द्वितीय मास की नवमी तिथि को हारित के पुत्र पाल की भार्या कोत्सीय अमोहनीय के द्वारा अपने पुत्रों पालघोष, पोठगघोष और धनघोष के साथ आर्यावती की प्रतिष्ठा की गई।
आर्यावती अर्हत की पूजा के लिए।
इस अभिलेख के प्रारम्भ में अर्हत् वर्धमान को नमस्कार से तथा 'आर्यावती अर्हत की पूजा के लिए' इस उल्लेख से इतना तो निश्चित हो जाता है कि यह अभिलेख जैन परम्परा से सम्बन्धित है । मेरी दृष्टि में अर्हत के स्थान पर आर्हत पाठ अधिक समीचीन लगता है, क्योंकि प्राचीन काल में जैनधर्म के अनुयायी 'आहत' (अर्हत् के उपासक) कहे जाते थे ।
फिर भी 'आर्यावती' आर्हतों अर्थात् जैनों के लिए किस रूप में उपास्य
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