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________________ 58 अनुसन्धान-३१ ३८ विरविजय पंन्यासनो श्रावक । देवचंद गुरुरागिजी । बेहेचरभाई संघपतिनि साथे । जावा सुभ मति जागिजी ।श्री॥२८॥ ३९ जात्रा करि संघ नयणे निहाली । गुंणरुप गुंथी फूलमालजी । जे नर नारि कंठे धरस्ये । ते वरसे सिवमालजी । श्री।।२९॥ संवत ओगणिस सत्ताविस वरसे । मास असाड सुखकारिजी । क्रष्ण पक्ष सातम रविवारे । प्रगट्यो जयजयकारजी ॥ श्री सिद्धाचल गुण मे गाया ॥३०॥ ईति श्री सेठ बेहेचरभाई जयचंद ॥ श्री सिद्धाचलजी तथा गिरनारजी संघ लेइ जात्रा करवा गया ॥ तथा घर देहरासर कराव्यु ॥ ते समे जलजात्रानो वरघोडो चढाव्यो । तेहनि ढालो संपूर्ण ॥ लपीकृतं ॥ मोतिचंद ॥ राजनग्रे ॥ परिशिष्ट केटलाक शब्दोना अर्थ कडी गितारथ आरज्या जुगलिक करम-भोंमि १४ क्र. गीतार्थ, शास्त्रज्ञ आर्या, साध्वी युगलिक-युगल कर्मभूमि, जेमा असि, मषी कृषिरूप व्यापार होय तेवू क्षेत्र पूर्व, जैनमते एक काळ-माप अंग्रेजी अधिकारी शिरस्तेदार जैन अनुष्ठान-विशेष; स्नात्र चौद राजलोक, सकल सृष्टि १६ पूरव साहेब श्रस्तेदार पंच सनात्र चउद क्षेत्र २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520531
Book TitleAnusandhan 2005 02 SrNo 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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