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________________ 54 अनुसन्धान-३१ ८४ केइ बालकुंमर गजसीर चढ्या । धरे महावत कर अंकुश नि। वाजा वाजे विलातना । भलि पडि रे नगारानि चूंस ||न।।५।। ८५ टहूके सरणाई टहूकडा । चाले भाला धरा झलकार ।न। झणझणिओ निसान ते झगमगे । गारदि तुरकि असवार ॥नम||६|| आठ छत्रधरा चांमरधरा । रुडो इंद्रध्वज संघात ।न। अलबेलि साहेलि साथमां । रांमणदिवो इछा वहू हाथ ।ति। ८७ भेर भुंगल वेंणा वाजति । वाजित्र विचित्र प्रकार नि। बहु धूपघटा गगनें चली । नवले वेसे नरनार ॥नमा॥७॥ ८८ नगरसेठ प्रेमाभाइ संचर्या । उमाभाइ हठीसंग पाट ।ना भगुभाई भांणाभाई आविया । जोईताराम त्रिकमदास ॥न||८|| ८९ परसोतम पूंजासा आविया । भेटी समेतसिखर महाराज ।न। गोकलभाई हिराभाई दो जणा । आगेवांन थई करे काज ।न॥१०॥ ९० नगिनदास बेहेचर गुणरागिया । जिनआगम धरता टेक ।न। श्रद्धावंत श्रावक टोलि मलि । काम करता धरि सुविवेक नि।।११।। ९१ ललुभाइ मांणेकचंद आविया । रवचंद सुबा छेला हार ।ना विद्यासालानु काम चलावता । भणता जिहां बालकुंमार (न।।१२।। ९२ जेयसंगभाई मुलचंदभाइ दीपता । जांणे इंद्रतणो अवतार ।न। भुराभाई डाह्याभाई सोभता । वरघोडे थया हूंसियार ।न॥१२॥ ९३ केवलभाइ बेहेचरभाई लस्करी । मलि श्रावक टोलि सरव ।ना संवेगि साधु साधवि । जांणि आव्या सासनपर्व ।न।१३॥ ९४ गुरुआंणा-परंपरा चालता । ते संजमधर अणगार ।न। गुरुलोपि तत्त्व पांमे नहि । बोले आगम वचन उदार ।न।१४।। ९५ साधु साधवि श्रावक श्राविका । जोवा मलियो सघलो साथ ।न। चांमर ढलंता रथ सिर पालखी । मांहे बेठा जगतना नाथ ।न।१६।। ९६ कर जोडि करे सहू वंदनां । प्रभु रहेजो हईडा पास ।न। देव देवी जूवे गगने चढी । कर तल पडवा नहि अवकास ।।न॥१७॥ ९७ हाथि घोडाने पालखि । घोड वेहल्योनो नहि पार ।ना हठिभाइ वाडि जई उतर्या । देव नुतरिया तेणि वार ।ना१८॥ _ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520531
Book TitleAnusandhan 2005 02 SrNo 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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