SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22 अनुसन्धान-३१ उपरथी एम लागे के तेओ आखा संघमां साथे ज रह्या हशे. एटले, आ बाबते स्पष्टतः कोई निर्णय करवानुं सहेलुं तो नथी ज. गमे तेम, पण कर्तानी कवित्वनी तथा रचनानी शक्ति खूब सरस अने समर्थ छे. शुभवीरना सेवकने छाजे तेवी कलम छे. शुभवीरनुं कवित्व तो जगविख्यात छे ज; तेमना श्रावक पण आटला सरस कवि होय ते आनन्ददायक तेमज आश्चर्यप्रेरक बीना छे. कविनी काव्यशक्तिनी जेमज, आ ढाळियांमां नोंधायेली केटलीक ऐतिहासिक वीगतो अने केटलीक जाणवा जेवी हकीकतो पण रसप्रद छे. ते वीगतोनुं अहीं अवलोकन करीशुं. १. संघयात्रानुं वर्ष १९२७ नुं छे. आ वखतमां राजनगर (अमदावाद)मां १०५ जैन मन्दिरो हतां तेवू कर्ता अहीं नोंधे छे. (कडी ५). २. ए समयना जैन मुनिओ पीळां कपडां पण पहेरता अने श्वेत वस्त्र पण राखता (कडी ६). ३. बेहेचरभाईना पिता जयेचंद नामे हता, अने तेमनी ज्ञाति (वीशा) श्रीमाली हती (कडी २०). ४. बहेचरभाई अंग्रेज सरकारमा शिरस्तेदारनी पदवी भोगवता. अंग्रेज अधिकारीओ पोतानो अमल देशी प्रजामांथी पसंद करेला बुद्धिमान अने वफादार अधिकारीओ द्वारा चलावता, अने तेमां शिरस्तेदारनी सत्ता बहु मोटी-महत्त्वनी गणाती (क. २१). ते शुभवीरना भक्त श्रावक हता, तेमनां पत्नी इच्छा वहू नामे, पुत्र पोपटभाई नामे हता (२९,३१). ५. गुरुना उपदेशे तेमने संघ काढवाना भाव थवाथी जोशी शिवशंकर पासे मुहूर्त्त जोवरावीने मुनि हरखविजयजी द्वारा तेनी परीक्षा कराववापूर्वक मागशर शुदि ६नो दिवस नक्की करेल छे (३४-३५). ६. संघपति बन्या पछी तेओ कामेश्वरनी पोळे देरासरे जई त्यांथी शान्तिनाथ भगवान घेर लाव्या, अने पछी प्रभुप्रतिमाने विनंतिपूर्वक म्यानामां (पालखीमां) पधरावी वाजते गाजते संघ साथे समेतशिखर(नी पोळ)ना देरे आव्या (क. ४५-४८). ७. त्यां विविध पूजाओ भणावी तथा जमणवारो करीने संघनी तैयारीओ करे छे. तेमां महत्त्वनी वात ए छे के संघवण (इच्छावहू) शत्रुजयतीर्थनी आराधनाना बे अट्ठम तथा सात छठनुं तप आदरे छे, अने समग्र राजनगरमांना ब्रह्मचर्यव्रत धरनारां श्रावक-श्राविकाओने आमंत्री जमण जमाडवापूर्वक तेमनुं बहुमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520531
Book TitleAnusandhan 2005 02 SrNo 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy