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________________ 84 March-2002 ढाल ६८ ॥ देसी० हीरविजइ गुणपेटी० ॥ राग - विराडी ॥ कर्म अंगाल न कीजइ भाई, पातिगनो नही पारो । बहु आरंभ करंतां पेखो, नर्ग लहइ नीरधारो, भवीका, अग्यनकर्म नवी कीजइ, अतीअनुकंपा रीदइअ धरीनिं, अभइदांन जगि दीजई, भवीका, अग्यन कर्म नवि कीजइ ।।आचली ॥४०॥ आगर ईटिनी हिमा नवी कीजइ, बहुरी(रां)गणीजे ल्याहाला । कर्म कुकर्म करंतां भाई, जीव होइ अतीकाला ॥४१॥ भवीका०॥ करसण वीर्ष म म छेदीश जन तुं, सीख देउ तुझ सारी । पूफ पत्र फल सोय सुडंतां, हंसा राखे वी(वा)री ॥४२ ॥ भवीका० ।। गाडी वइहइल्यु हल दंताला, नावी जे नीपजावी । सो पणि वणज तजइ नर जेता, तस मति चोखी आवी ॥४३॥भ० ।। गाडावाही म करो मानव, चोमासइ चीत वारो । थाइ प्रथवी सकल जंतमइ, हीत करी ते ऊगारो ॥४४॥ भ०॥ दयाधर्म जगि सारो, भ० ॥ आतम आपसो तारो, भ० ॥ को म म प्रांणी मारो, भ० ॥ लाधो धर्म म म हारो, भ० ।। फोडीकर्म न कीजइ भाई, कुप सरोवर वाव्यु । भोमिफोड कीओ द्रहइ कारणि, नर भव्य सो नवि फाव्यो ।। ४५ ॥भ०॥ मच्छ कच्छ मिंडक बहु बगला, एक एकनि मारइ । पापतणुं भाजन ए करतां, आप केही परी तारइ ॥४६ ॥ भ०॥ दुहा०॥ आप केही परि तारसइ, करतो भाजन पाप । वणज कुवणज न परहरइ, ते कीम छोडइ आप ॥४७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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