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________________ 80 पाच अतीचार एहना आख्या, तीहा म म वाहो अंगजी । आवंतां जावंता म करीश, नीम तणो वली भंग जी ॥१॥ दीग० ॥ पाठवणी आघी पाठवता, अंगि अतीचार थाइ जी । वरतभंग करइ नर जेता, ते नर नरगिं जाइजी ||२||दीग० ॥ March-2002 एक दसि सोय संखेपी सहइंजि, बीजी कांय वधारी जी । वरतखंडणा एम नवी कीजइ, सुणज्यु सहु नरनारी जी ॥३॥ दीग० काकजंघा राजा अती बलीओ, तेणंइ ए वरत न छुड्यु जी । जो पण ते वरी वश पडीओ, दशनुं मांन न खंड्यु जी ||४|| दीग० ॥ जे नर ए व्रत चोखुं पालइ, कर्म कठण ते गालइ जी । कार्ण पण जे किमेह न चुकइ, आतम ते अजुआलइ जी ||५|| दीग० ॥ दूहा० ॥ आतम एम अजुआलीइ, कीजइ तत्त्ववीचार । सतम वरत संभारीइ, तो लहीइ भवपार || ६ || ढाल ६४ ॥ देसी० सुणो मेरी सजनी० ॥ राग-केदारो ॥ सतम वरत संभारो भाई रे, चउदइ नीम ज करो सखाई रे । नीत संखेपो एकचीत लाईरे, हंसानि छइ ए हीतदाई रे ॥७॥ सचीत नीवारो, द्रवि संखेपो रे, वीगइ वीचारी लिजइ रोषो (रोपो ?) रे । एहथी वाधइ वीषइअ वसेषो रे, कामिं लही दूरगति कोरे ||८|| वांहाणई केरुं मांन सु कीजइ रे, मुखि तंबोलह ववेकिं दीजइ रे । वस्त्र कुशमनी वगति करीजइ रे, वाहन सुअण वलेप गुंणीजइ रे ॥९॥ वीषइ नीवारो पंथ संभारो रे, नांहांण नवणनो बोल सुधारो रे । भात सुं पाणी वीधिरं वीचारो रे, नीम संभारी आतम तारो रे ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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