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________________ अनुसंधान - १९ ए ॥ ४७৷৷ शरीओ अतीसुकमाल रे वंदू अइमतो, नागदत्त सीलि र कइवनो गुणवंत रे समरू शकोशल, पूडरीकनिं पूजीइ ए ॥ ४८ ॥ प्रभवो वीस्णकुमार रे कुरगढु मुनी, करकंडु सीलिं भलो ए ॥ ४९ ॥ क्रीण अनि बलिभद्र रे वंदू हनमंत, दशानभद्र दीनकर समो ए ॥ ५०॥ ब्राहामी सूदरी सोय रे मयणासुंदरी, दवदंती सीलिं भली ए ॥ ५१ ॥ मृगावती पून्यवंत रे सुलसा साधवी, मणिरेहा मुख्य मंडीइ ए ॥ ५२ ॥ कुता द्रपदी दोय रे चंदनबाला ए, पूफचुला राजिमती ए ॥ ५३ ॥ हा० ॥ सीलवंत नर नार्यनुं नतिं लीजइ नांम । नवनीध्य चऊदरयण घरिं, जस जगम्हा अभीरांम ॥ ५४॥ मन विन सील ज पालीइ, तो पणि सुर अवतार । चीत चोखु नित्य राखता, ते किम न लहइ पार॥५५॥ ढाल ५८ ॥ चोपई ॥ पंच अतिचार एहना सार्य, विधवा देश कुलंगनां नांर्य । अपरग्रहीता शंगम म करो, हाश वीनोध क्रीडा परीहरो ॥५६॥ वली सदारा सोक्य ज जेह, द्रीष्टराग कर्यु वली तेह | विप्रजाश कीधो मनि धणुं, पाप आल्युओ आतमतनुं ॥५७॥ सरागवचन बोल्यु मुष्य थकी, वीकलपथी जीऊ थाइ दूखी । अनंगक्रीडा कीधी रंगि, मीछादूकड द्यु जिनसंग ॥५८॥ परविहीवा मेलि कां दीइ, विषइ वधारी स्यु फल लीइ । कांमभोग तीवर अभीलाष, सील परजाली की राख ॥ ५९॥ रूप शणगार वखाणइ वली, मन चोखुं पणि जाइ टली । जिम ली मुखस्य नवी मलइ, पणि तस वातिं डाढ्य ज गलइ ॥६०॥ आठम्य पाषी पून्यम जाण्य, ए छइ स्युभ करणीनी खांण्य । एइ दिवसिं ए राखो आप, भोग करंता पोढु पाप ॥ ६१ ॥ Jain Education International 75 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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