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कविए सरस्वती-वर्णनमां रोकी छे, (कडी क्र. १२ - २८) जे तेमनी शारदा प्रत्येनी अनुपम आस्थानो संकेत आपी जाय छे. विख्यात इतिहासलेखक श्री मोहनलाल दलीचंद देशाईए नोंध्युं छे के "सरस्वती देवी प्रत्ये संपूर्ण भक्ति होई तेमनी हंमेशां स्तुति करी पोतानी कृतिओनो प्रारंभ करेल छे. अने जनश्रुति प्रमाणे तेमणे ते देवीने आराधन करी प्रसन्न करी हती अने देवीनो प्रसाद मेळव्यो हतो. (जैगूक ३, पृ. २४) " विशेष रसप्रद वात ए छे के प्रस्तुत रासनी प्रति कविए जाते लखेली छे, अने तेना प्रथम पत्र पर कविए स्वहस्ते ज वीणापुस्तकधारिणी अमृतपूर्णकमण्डलुहारिणी जपमालिकाविलसितहस्ता मयूरवाहिनी सरस्वती देवीनुं चित्र पण आलेखेलुं छे. चित्रकलानी दृष्टिए स्हेज पण आकर्षकता के विशेषता न होवा छतां, एक चोपडा चीतरनार वृद्ध वाणियाए पोतानी ऊर्मिओने जे भावसभर रीते अभिव्यक्त करी छे, ते ज आ चित्रनी अने तेना आलेखकनी ध्यानार्ह विशेषता छे. आ चित्र आ अंकमां अन्यत्र (टाईटल - १ पर) मूकवामां आव्युं पण छे.
March-2002
कर्ता दूहाओने प्रथम अंश गणतां हशे तेथी तेमणे प्रथम ढाळने सीधो (२) क्रमांक ज आप्यो छे. अहीं मूल क्रमांकनी जोडे, सुगमता खातर, १ थी क्रमांक लखी उमेर्या छे. एक महत्त्वनी वात अहीं स्पष्ट थवी जोईए. कर्ता जैनधर्मी छे. तेमणे निरूपण करवा धारेलो विषय प्रणालिकागत रीते जैन धर्म अने शास्त्रो साथै संबद्ध छे. तेथी स्वाभाविक रीते ज तेमां जैन आचारशास्त्रीय परिभाषाना शब्दो - शब्दजूथ वारंवार आववाना ज. ते तमामनुं अर्थविवरण आपवानो अर्थ कृतिनुं (गुजराती) विवेचन ज थाय, जे अप्रस्तुत छे. आ माटे तो जिज्ञासुओए पद्धतिसर जैन परिभाषा शीखवी रहे, कां तेना जाणकारो पाथी ते शब्दो - अर्थोनी जाणकारी मेळवी लेवी पडे.
ढाल ४(३) मां दशविध - दश प्रकारना यतिधर्मनो अने तेना अनुषंगे बार भेदे तपश्चर्यानो अछडतो निर्देश थयो छे. तो ढाल ५ (४) मां धर्मरत्नने माटे योग्य बनावनारा श्रावकोचित २१ गुणोनां नाम आप्यां छे. ढाल ६ (५) मां व्रतो लेवा माटे उत्सुक गृहस्थने थोडीक पूर्व भूमिकारूप शिखामणो आपीने अढार दोषोनां नामो लेवापूर्वक जिनेश्वर - अरिहंत ते १८ दोषरहित एवा देव होवानुं जणावे छे. ढाल ६मां अरिहंतना ३४ अतिशयोनो परिचय मळे छे,
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