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अनुसंधान - १९
तजीइ पातिग पूण्यनिं ठांमि, तजीइ आलस धर्मह कांमि । तजीइ स्तुति मुखी पोतातणी, तजीइ नर लंपट अवगुणी ॥ २९ ॥ तजीइ कगरू केरा पाय, तजीइ घरि मारकणी गाय । तजीइ विर्ष थयु जे खीण, तजीइ धर्म दया जे हीण ||३०||
॥
धर्म दयाइं जांणजे, जिम रंग साचो चोल ।
वली द्रीष्टांत आगलि अछइ, हित युगति कलोल ॥३१॥ ढाल ३८ । ( ३७ ) ॥
देसी० छांनो छपीनिं कंता किहा रघु रे० ॥ रागधर्म दयाइं जांणजे रे, ते नीश [च] इ नीरधार रे । जीव जतन करी राखीइ रे, तो लहीइ भवपार रे ॥
पहइलुंनिं व्रत एम पालिइ रे, जिव सकलनी सार रे । दया समो धर्म को नही रे, हंशा धर्म असार रे ||३३|| धर्म० ॥
- रामग्यरी ॥
धर्म दयाइं जांणजे रे || आंचली० ॥ ३२ ॥
हिंवरथी वछ ऊपजइ रे, ससलाथी सीही होई रे ।
जलधर विन अन नीपजइ रे, तो धर्म दया विन होय रे ||३४|| धर्म०॥ कुपरखबोलि जो थीर रहइ रे, सुपर खलोपइ लीह रे ।
या विना धर्म तो कहु रे, घास भखइ जो सीह रे ||३५|| धर्म० ॥
दूहा० ॥ धर्म दयाइं जांणजे, जिन आग्यना परमांण ।
पातिग करतां पूण्य कलइ, जोय विमासी जांण ||३६||
ढाल ३९ । ( ३८ ) ॥
देसी० एकदीन राजसुभा ठीओ० ॥ राग
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वण गुणति विद्या गलइ, दूरि गयां जिम नेह ।
सील गलइ स्त्रीसंगथी रे, तपईं गलइ जिम देहो रे ||३७||
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गोडी ॥
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दया चीति राखीइ । जिम परनिं ऊपगारो रे, मधुरं भाखीइ || आंचली० ॥
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