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________________ अनुसंधान - १९ त्रीभोवननायक वीस्वप्रकार, मोक्षमारगनो जे दातार । अस्या गुण जांणी भगवंत, जेणइ नवि पूया ए अरहंत ||६३ || इहलोक परलोक भणी, कां तु ध्याइ त्रीभोवनधंणी । कष्टं को नर पाम्यु खोभ, जिनवरनि देखाडइ लोभ ॥६४॥ याग भोगमांनि निं जाय, जिनवरनिं जई लागइ पाय । वतीगंछा तु पणि जांण्य, अंगि अतिचार नर म म आण्य ॥६५॥ ढाल ३३ । ( ३२ ) ॥ देसी० से सुत त्रीशलादेवी सतीनो ॥ वस्त्र मलण मल मुनीवर देखी, जेणइ मुक्यु जिनधर्म ऊवेखी तेणइ कार्ण्य तेणइ दूरगति लेखी, ते नर मुढमतीअ वसेषी ||६६ || एणइ जगी शंघ चतुरविधी मोटो, जाणे कनकतणो वली लोटो | नंद्या तास करइ ते खोटो, लोधी (धो) पापतणो शरि सोटो ॥६७॥ साधतणी जेणइ नंद्या कीधी, सुधगति छंडी दूरगति लोधी । विषह कोचोली वेगिं पीधी, मुगतीपोलि तेणइ भोगल दीधी ||६८ || 47 साधर्मीको अवगुण लीधो, मीछादूकड ते नवि दीधो । तो तुझ काज एकु नवि सीधो, मुगति कोट नवि जाइ लीधो ॥६९॥ नंद्या म करो को वली कहइनी, नंद्या कीजइ आतम - देहेनी । असीअ प्रगति होसइ जगि जेहेनी, गति ऊची होइ पणी तेहेनी ॥७०॥ कर्म दूगंछा म करो कोई, हरिकेसी रषि तु पणि जोई । भव ऊत्तमनो ते पणि खोई, कुल चांडाल तणइ मुनी सोई ॥७१॥ कर्म दूगंछ कर्या व्यन सारो, राय पूण्याढ्यचरित्र संभारो । आतमसीख देई एम वारो, त्रवधि नंद्या सोय नीवारो ॥७२॥ एम भव भमता पातिग अंगिं, मीछादूकड छु जिनसंगिं । पाप पखालु आतमरंगिं, जिम जगि थायु सीध अलंगि ॥७३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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