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________________ 130 March-2002 द्रव्य भाव मली एकतानस्युं रे आराहे पूजन ठाम । अहनिशि प्रभुनी प्रभुता लीनो रहे रे सुरनरमें चढती मांम ॥श्री०॥२॥ कमठासुर हठ दुरई कर्यों रे करुणा कीधी खास । प्रदीप सम केवल झलहलई रे को अनाण तिमिर नास ॥श्री०॥३॥ त्रिगडें बेठा श्री जिन उपदिशे रे लोकलोक स्वरूप । 'लोकमार्गनि अवलोकतां रे अरूपी अक्षय रूप ॥श्री०॥४॥ महानंद मोहलमा राजता रे सुख अनंतनो वास । ते जिनचन्द्र प्रभु हृदयइं धरे रे प्रगटई हीर जसवास ||श्री०॥५॥ इति श्री पार्श्व जिन स्तवनम् ॥ १. आणंद २. तत्त्व मार्गनि श्रीमहावीरस्वामिस्तवन प्रथम गोवालिया त० ए देशी ॥ त्रिभुवन केरो साहिबा जी वीरजी परम दयाल । शासन शोभा वधारतो .जी करी करुणा मयाल रे जिनजी रे ॥१॥ दासनी करो रे सार जि० ॥ सिद्धारथकुल-नभोमणि जी त्रिशला मात मल्हार । क्षत्रीयकुंडे जनमीया जी चौद स्वप्न लही सार रे जि० ॥२॥ संवच्छरी दान देई करी जी राज-रमणीनें छोड । संजमनारी परणीया जी पुंहतां मननां कोड रे जि० ॥३॥ घोर परिसहां जीतीया जी तोड्या कर्मना मोड । घातिकर्म दूरि कर्यां जी पोहता पामी सुर नमें कोड रे जि० ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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