SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 89 गयण १७.२ गगन, आकाश निगोद २३.२ जेमां अनंत जीवो होय गहिबर १४.२ व्याकुळ छे ते वनस्पति गहिलपणउं ३.७ घेलापणुं परि ४.६ पेरे, पेठे, जेम गेह १९.४ घर (सं.) पंख, पंखडी ६.६,७ पांखडी घण ७.७ हथोडो पंजर ७.२ पिंजर घात ७.३ हणवू पावस १९.४ वर्षाऋतु (सं. प्रावृत) चिंत २६.६ चित्त पास २.७ पासुं, पडद्म छाह २२.२ छाइ देवू, ढांकी देवू | पास ७.२ पाश, बंधन जवथी २३.६ ज्यारथी, ज्यारे पुव्वविदेह १.२ पूर्वविदेह-एक जंवारडु, जंवारु ८.३, ८.६ जन्मारो क्षेत्रनुं नाम जिणेसर २७.५ जिनेश्वर पुष्कलावती १.१ महाविदेह क्षेत्रनो जीप- १.८ जीतवं एक प्रदेश झांप- २१.२ कूदवू, ठेकवू पुंडरगिणी १.३ पुष्कलावती झील २३.४ नाहवू प्रदेशनगर ठव २६.२ स्थापवं, मूकबू, पुंडरीक १.३ मां श्वेतकमल समानधारण करवं मां श्रेष्ठ तव १८.८ तो प्रमाण २०.४ विस्तार, परिमाण तस १७.६ तेना (सं. तस्य) बधनामी ८.८ बदनामी ताती ६.७ तप्त बांह ९.२ बाहु, हाथ तां १३.८ त्यां, तो बिका- ६.६ वेचायूँ तु ५.८ तो भणी २५.१-ने कारणे, -ने लीधे तुहइ, तुहि २४.४, २४.५ तोपण भरकी ११.४ भूरकी, मोहिनी दीह ९.६ दिवस भाज ७.७ भांगवं दुरिजन १३.३ दुर्जन मजरे दे-२५.७ साटुं वाळवं, धरथी १२.८ मूळथी बदलो आपवो, फळ आपवू धाइ ६.६ धात्री, विधाता मिसि २४.२ मेश, शाही धाता २४.५ बृहस्पति मुहि ६.८ मने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy