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________________ 71 चमकवाळा, त्रिकालाबाध्य (मोक्ष नामना) सुखने आपवानुं माहात्म्य धरावता एवा तेजस्वरूपीने तुं भज. २४. बंने कानमां वाळी पहेरेली काननी सुंदर बूट उपरना बकुल पुष्पथी शोभती, हंसीओना झूड वडे करेली गतिनी रमतवातमां नकल करती, सखीओ साथे मधुर अने प्रशस्त वातचीत करती, पोताना दर्शन द्वारा आंखोने सफळ करनारी, कमळ सहित अन्य पुष्पोने हस्तमां धारण करनारी, कालीनागनं दमन करनार (कृष्ण)नी बहेन, तालना दळ जेवी कान्ति धरावती (श्यामवर्णा) ते कालीमाता मारु कल्याण करनारी थजो. २५. दक्षयज्ञना ध्वंस माटे चतुराईपूर्वकनो आग्रह राखनार, देवो/ विद्वानोना संपूर्ण पालनमां तत्पर, लाखोनी संख्यामा रहेल चन्द्रो जेवा धवल देहवाळा, पराजित शत्रुओ पासेथी (सांभळवा) मळती (तेमना विशेनी) आश्चर्यकारक कथाओवाळा, नन्दी पर सवारी करता, लाख जेवा राक्षसोना समूहनो संहार करनारा अनर्गळ दयावाळा, नमन करता भक्तोना पालनहार, यक्षाधिप कुबेरना प्रिय मित्र एवा त्रिलोचन तरीके ओळखाता शिवना तेजनुं तुं स्मरण कर. २६. राम नामना पोताना पुत्रनी कामनाने पूरी करवा माटे उत्सुक एवा जगन्नाथे अश्वधाटी नामनुं आ विश्वहृद्य काव्य रच्यु. पंडित जगन्नाथे रचेलं अश्वधाटी काव्य पूरुं थयुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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