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________________ 276 केटलीक रसप्रद माहिती मन धर्मपत्नी भावनानुसार, यमन्दिरमा प्रभावाणी (१) श्रीहरिवल्लभ भायाणीना अंगत संग्रहनां मूल्यवान पुस्तकोनो एक मोटो भाग, तेमनां धर्मपत्नी श्रीचंद्रकलाबेन तथा पुत्र श्री उत्पल भायाणीए, श्रीभायाणीसाहेबनी भावनानुसार, अमदावादमां नव-प्रस्थापित 'श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी जैन स्वाध्यायमन्दिर'ना ग्रन्थालयने भेट आप्या छे. ते ग्रन्थोने स्वाध्यायमंदिरना 'श्रीहरिवल्लभ भायाणी संशोधन कक्ष' मां उचित रीते राखवामां आव्या छे. पं.दलसुख मालवणिया प्राकृत ग्रन्थ परिषद (PTS.), अमदावादना उपक्रमे, विक्रमनी दशमी सदीमां थयेला, नागेन्द्रकुलीन श्री विजयसिंहाचार्ये रचेल, प्राकृत भाषामां गाथाबद्ध 'सिरिभुयणसुंदरीकहा' नुं प्रकाशन बे खंडमां थयुं छे. आ ग्रन्थ- संशोधन-संपादन आ. विजयशीलचन्द्रसूरिए करेल छे. प्रथम 'कथाखण्ड'मां समीक्षित वाचना, ८९४४ गाथाओमां पथरायेली मूकाई छे. बीजा 'परिशिष्ट खण्ड'मां हिन्दीमां ज 'अवलोकन', 'कथा-सार', तथा ४ विस्तृत परिशिष्टो आपेल छे. प्राप्तिस्थान : श्री विजयनेमिसूरि जैन स्वाध्याय मंदिर, १२, भगतबाग, नवा शारदामंदिर रोड, पालडी, अमदावाद-३८०००७ (३) 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्य' (हेमचन्द्राचार्य)नो ५-६-७ पर्वात्मक त्रीजो विभाग हवे उपलब्ध छे. त्रणे पर्वोनी विविध पाठांतरो साथे समीक्षित वाचना आमां आपी छे. संशोधको : पं. रमणीकविजयजी गणि तथा विजयशीलचन्द्रसूरि. (४) 'ज्ञानसारनुं तत्त्वदर्शन' आ शीर्षक हेठळ, भावनगरनां डॉ. श्रीमती मालतीबेन के. शाहनो Ph.D.माटेनो शोध-महानिबंध ताजेतरमा प्रकट थयो छे. ३-४ क्रमांकना प्रकाशक : श्रीहेमचन्द्राचार्य निधि-अमदावाद, अने प्राप्तिस्थान क्रमांक (२) मुजब छे. (५) 'नन्दनवनकल्पतरु'नामक संस्कृत अयनपत्र (संपादनः कीर्तित्रयी)नो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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