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________________ अनेक दुर्घटनाओमांथी सर्जायेली घटना एटले हरिवल्लभ भायाणी घरमां हाल्लां कुस्ती करतां होय एवी दारुण गरीबीमां पण दिवसरात महेनत करीने संस्कृतना सातेय विषय साथे बी. ए. मां फर्स्ट क्लास आवेला तेजस्वी विद्यार्थीने आगळ भणवानी धगश होय, परंतु फी भरवा माटेनी रकमनो बंदोबस्त थई शके तेम न होय तो एवा संजोगोमां बिच्चारा विद्यार्थीनी हालत केवी थाय ? भावनगरनी कोलेजमां आर्ट्सना छेल्ला वर्षमां अभ्यास करता ए विद्यार्थीनी आर्थिक परिस्थिति पहेलेथी ज घणी नबळी कही शकाय तेवी हती. बे टंकनुं मांड मांड पूरुं थतुं होय तेवा कपरा संजोगोमां भणवाना खर्चा तो केमे करीने परवडे तेम नहोता. छतां भणवामां से पहेलेथी ज होंशियार हतो एटले नानीमोटी स्कोलरशिप मळी रहेती. उपरांत कॉलेजना समय पछी ए ट्युशन करतो, एथी थोडीघणी आवक पण थई जती. एने लीधे भणवानुंय थतुं अने घरखर्चनुं गाडुं पण गबडतुं आ रीते ताणीतूसीने बे छेडा भेगा करतां करतां ज ए विद्यार्थी बी. ए. नी डिग्री मेळवी लीधी. हवे आ विद्यार्थी मुंबई जईने आगळ भणवा मागतो हतो, परंतु भणवा माटेनी जरूरी रकमनी सगवड थई शके तेम नहोतुं. मुंबईमां स्कोलरशिपनी जोगवाई क्यांथी करवी ए एक सवाल हतो. वळी फी भरवा माटेनी रकम केवी रीते ऊभी करवी ए बीजो सवाल हतो. विद्यार्थी मूंझाई गयो. आखरे खूब विचार कर्या पछी एणे एक रस्तो शोधी काढ्यो : 'हुं मुंबईमां नोकरी करीश अने आगळ भणीश. ' 'ए जुलाई महिनो हतो. परीक्षानुं परिणाम जाहेर थया पछी पहेली ट्रेन पकडीने हुं मुंबई रहता मामाने घेर पहोंची गयो.' संस्कृत, प्राकृत, अर्धमागधी अने अपभ्रंश जेवी भाषाओना विद्वान तथा मोटा गजाना साहित्यकार हरिवल्लभ भायाणी जीवनना उत्तरार्धनें आरे आवीने ऊभा छे त्यारे जीवनपूर्वार्धनी कथामांडणी करी रह्या छे. एंसी वर्षनी उंमरना आ विद्वान आजथी लगभग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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