SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 231 छे. एटले ज भायाणीसाहेबनी मित्रमंडळीमां मनोविज्ञानीओ, समाजशास्त्रीओ, राजनीतिशास्त्रीओ, कलाकारो वगेरे अनेक प्रकारना लोको जोवा मळे छे. एमनी साथे अनौपचारिक गोष्ठिओ तो चाल्या ज करे छे ते उपरांत, भायाणीसाहेब औपचारिक गोष्ठिओ पण योजे छे अने विविध क्षेत्रना विद्यापुरुषो पासेथी एमना क्षेत्रमा शुं चाली रह्यं छे एनी माहिती कढावता रहे छे. आ रीते पोते समृद्ध थता रहे छे. आ कारणे भायाणीसाहेबमां हमेशां ताजगी अने अभिनवता प्रतीत थाय छे. वळी ए बीजानो खजानो लूटता रहे छे, तेम पोतानो खजानो पण लूंटावता रहे छे. ए कंई कृपण विद्याधनी नथी. एमने मळीए त्यारे ए आपणी समक्ष कंईकंई नवुनवू धर्या करे- नवं पुस्तक, नवो विचार, नवी माहिती. भायाणीसाहेब पोते कौतुकथी छलकाता होय, रोमांच अनुभवता होय अने आपणने पण ए कौतुकसृष्टिमां खेंची जाय, रोमांच अनुभवावे. एक ताजी हवानो आपणने स्पर्श थाय, वहेता तीर्थजळमां न्हाता होईए एवी प्रफुल्लता आपणा चित्तमां प्रसरी रहे. भायाणी साहेब आत्मरत विद्वान नथी. पोतानो खजानो बीजा पासे लूटावीने ए अटकी जता नथी, बीजाओने विद्याकार्योमां प्रेरवानुं अने सहायभूत थवानुं पण हमेशां करता रहे छे. ए कार्यदिशा सूचवे, अनो नकशो घडी आपे, माहिती ने साधनो पूरां पाडे, साथे रही गूंचो उकेली आपे ने केटलीक वार तो प्रकाशननी व्यवस्था पण करावी आपे. भायाणीसाहेब पासेथी आवां प्रेरणा-प्रोत्साहन मेळवनारां केटलां बधां होय छे ! छतां पोतानां समय-श्रमनी लहाणी ओ अटला मोकळा मनथी करे छे के भायाणी साहेबने आ कई रीते पोषाई शकतुं हशे अनो विचार आपणने आवे, अमनां समय-श्रम. लेतां संकोच थाय. सौनुं विद्यातप वधे ए माटेनी भायाणीसाहेबनी तत्परता अटली बधी छे के ए मोटानाना अभ्यासीनो विचार करता नथी, पात्र-अपात्रनोये नहीं. आथी ज कोई वार नबळा काम साथे ओमनुं नाम जोडातुं होय एवं बने छे. पण पोतानी लाक्षणिक हळवाशथी ओ आ स्थितिने हसी ले छे. एक पुस्तकमां भायाणीसाहेबनी प्रस्तावना जोईने कोईए एमने फरियाद करी के आवा नबळा पुस्तकमां तमारी प्रस्तावना केम ? भायाणीसाहेबे हाजर जवाब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy