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________________ 200 पत्रचर्चा - १ 'सारस्वतोल्लासकाव्य'ना कर्ता 'अनुसंधान-१५' मां आ. विजयशीलचन्द्रसूरिसंपादित 'सारस्वतोल्लासकाव्य' छपायुं छे (पृ. १-२६). संपादक कहे छे के कर्ताए पोतानुं नाम अज्ञात राख्युं छे, पण पोताना गुरुनुं नाम 'नन्दिरत्न' पद्य १५३मां निर्देश्युं छे. 'अनुसंधान - १६'मां मुनिश्री भुवनचंद्रजी कर्तानामनो तर्क आ रीते करे छे : "मने पूरो वहेम छे के १५१मा श्लोकमां कविए संकेतथी पोतानुं नाम दर्शाव्युं छे. 'सौधाऽजनि' छपायुं छे त्यां 'सोऽथाजनि' होवू जोइए, जे अर्थनो विचार करतां निःशंक रूपे समजाय छे. 'आराधेल श्रुतदेवतानी महान कृपाथी आवेला स्वप्नरूपी मधुमासना प्रभावे ते साधक प्रथमनी 'अकरीर' एवी संज्ञारूपी वेलडी पर 'कवित्व'नुं पुष्प आजे लागी रडं होय एवो थयो.' अर्थात् ते हवे 'अकरीर कवि' कहेवायो. 'संज्ञा' शब्द नामवाचक छे. कविना नामनो अर्थ 'करीर नहीं' एवो थाय छे. 'अकरु' के 'नकेरु' 'अकेरु' जेवू नाम होई शके. 'अकरीर'मां कवितुं नाम छुपायुं छे ते निश्चित छे.' (पृ. २४३) मने आ तर्क घणो दूराकृष्ट लागे छे. कवि नन्दिरत्नना शिष्य छे एमां शंका नथी. एमर्नु आवं कोई नाम होवानुं संभवतुं नथी.. सद्भाग्ये आ काव्यमां कर्तानाम सुधी पहोंचवानी वधारे श्रद्धेय चावी रहेली ज छे. छेल्ली कडीना बीजा चरणमां 'मुखाब्जमणिमण्डनतां' एवा शब्दो छे. मणिमण्डन-रत्नमंडन एम सहेलाइथी करी शकाय अने नन्दिरत्नशिष्य . रत्नमंडन अन्यत्र मळे ज छे. (जुओ जैन गुर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति भा. १, पृ. ७६-७८, गुजराती साहित्य कोश खंड १, पृ. ३४१-४२, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, फकरा ७५२, ७६१ अने ७६३ तथा जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास भा. २, पृ. १७२, २२७ अने २७१.) रत्नमंडन तपगच्छना साधु छे. क्यांक 'रत्नमंदिर' एवं वैकल्पिक नाम पण एमर्नु अपायुं छे. एमनी गुरुपरंपरा पण बे रीतनी नोंधायेली छे : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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