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व्याधिग्रस्तोने न अपाय. भिन्न भिन्न परंपराओना समन्वयमां तेम ज तेमनी एकतामां बाधक एवा शुष्क तर्क, वादविवाद अने कुतर्कग्रहने ते योगसाधनाना विरोधी गणे छे.
(५) आठ योगदृष्टिओनी योजनानुं सूचन हरिभद्रसूरिने बौद्ध आचार्य वसुबन्धु रचित अभिधर्मकोश (१.४१ ) मांथी मळ्युं लागे छे. त्यां कह्युं छे : चक्षुश्च धर्मधातोश्च प्रदेशो दृष्टिरष्टधा । आना उपर स्वोपज्ञ भाष्यमां एक वाक्य आ प्रमाणे शरू थाय छे : समेघामेघरात्रिन्दिवरूपदर्शनवत्.... । हवे सरखावो योगदृष्टिसमुच्चयना श्लोक १४नो प्रारंभ : समेघामेघरात्र्यादौ... । वळी, हरिभद्रसूरिए • ओघदृष्टि अने योगदृष्टिनो भेद समजाव्यो छे. श्लोक १३ अने १४मां ते 'योगदृष्टि' अने 'ओघदृष्टि' पदोनो प्रयोग करे छे. अभिधर्मकोश ( ५.३७) मां पण आ बे प्रकारनी दृष्टिओ अने आ ज बे पदोनो प्रयोग मळे छे. त्यां (५.३७)मां तथौघयोगा दृष्टीनां एवो प्रयोग छे अने (५.३८) मां आवता द्विधा दृष्टेर्विवेचनात् ए पादमां आ बे प्रकारनी दृष्टिओना भेदनो निर्देश छे. परंतु अभिधर्मकोशनुं आ बे दृष्टिओनुं विवेचन हरिभद्रसूरिना विवेचनथी साव जुदुं छे. आ उपरथी एटलुं तो निश्चित छे के हरिभद्रसूरि सभाष्य अभिधर्मकोशना अभ्यासी हता अने तेनुं महत्त्व तेमना ख्याल बहार न हतुं मने लागे छे के अभिधर्मकोशभाष्य, तत्त्वार्थसूत्रभाष्य अने योगभाष्य आ त्रणनो ऊंडाणथी अभ्यास करनारनी दृष्टि अवश्य खुली जाय छे अने मात्र एक परंपराना ग्रंथने जाणनारने जे ज्ञान - भान कदी प्राप्त थतुं नथी ते ज्ञान - भान आ त्रणे परंपराना आ त्रणे ग्रंथोने मुक्त मने वांची समजनारने एकाएक प्रगट थाय छे. बौद्ध बुद्धघोषकृत 'विसुद्धिमग्ग' पण योगना जिज्ञासुओए अवश्य वांचवो जोईए. तेनुं हिन्दी अने अंग्रेजी भाषान्तर थयुं छे.
(६) अभिधर्मकोशमांथी तो आठ योगदृष्टिओनुं सूचनमात्र हरिभद्रसूरिने मळ्युं छे, ज्यारे आठ योगदृष्टिओ द्वारा आध्यात्मिक विकासक्रमनुं विगतवार व्यवस्थित योजनाबद्ध निरूपण तेमनुं पोतानुं आगवुं छे. आठ योगदृष्टिओ द्वारा आध्यात्मिक उत्क्रान्तिनो सिद्धान्त तेमणे पोते ज पतंजलिना आठ योगांगो, बौद्ध भदंत भास्करना आठ चित्तगुणो अने शैव भगवद्दत्तनी आठ चित्तदोषमुक्तिओने सांकळी घड्यो छे. आम करीने तेमणे आध्यात्मिक क्रमिक सोपानोना आलेखनमां
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