SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य हरिभद्र अने तेमनो 'योगदृष्टिसमुच्चय' ग्रंथ . नगीन जी. शाह . महामेधावी उदारचरित महान जैनाचार्य हरिभद्रसूरिए (वि. ७५७८२७) विपुल साहित्यसर्जन कर्यु छे. तेनी गुणवत्ता पण उच्च कोटिनी छे. तेमणे जैनागमनी टीकाओ लखी छे, जैनागमोना विविध विषयो उपर प्रकरणग्रन्थो लख्या छे, कथाग्रन्थो रच्या छे, दर्शन अने योग विषयक रचनाओ करी छे. वळी, संस्कृत अने प्राकृत बंने भाषामां तेमणे सर्जन कर्यु छे. तेमणे जैनवाङ्मयनां विविध क्षेत्रोमां प्रदान कर्यु छे, एटलुं ज नहि पण ते काळे जे भारतीय जैनेतर विद्यासमृद्धि हती तेमांथी उत्तमोत्तम तत्त्वोने ग्रही संचय करी तेमणे जैनसाहित्यनी श्रीवृद्धि करी छे. तेमनी केटलीक प्रसिद्ध कृतिओनां नाम छे - धूर्ताख्यान, समरादित्यकथा, धर्मबिंदु, ललितविस्तरा, अष्टक, पोडशक, योगबिंदु, योगशतक, योगदृष्टिसमुच्चय, योगविंशिका, अनेकान्तजयपताका, षड्दर्शनसमुच्चय, शास्त्रवार्तासमुच्चय. बौद्ध दिङ्नागकृत न्यायप्रवेश उपर टीका लखी तेमणे सिद्ध कर्यु के ज्ञानसामग्री उपर कोई संप्रदायविशेषनो इजारो नथी. ए तो जे कोई तेनो उपयोग करे तेनी छे. आवा महान आचार्य पोताने साध्वी याकिनी महत्तराना विद्यापुत्र(सूनु) तरीके ओळखावे छे. आमां प्रगट थाय छे तेमना हृदयनी विशाळता अने तेमना चित्तनी निर्मळ उदारता-उदात्तता. अहीं आटलुं ज पर्याप्त छे. विशेष जिज्ञासा धरावनारे पूज्य पंडित सुखलालजीए लखेलुं पुस्तक 'समदर्शी आचार्य हरिभद्र' जोवू जोईए. आ निबंधमां आपणो प्रयत्न 'योगदृष्टिसमुच्चय' ग्रंथनी जे केटलीक __महत्त्वनी लाक्षणिकताओ छे तेमने संक्षेपमां दर्शाववानो छे. ___(१) जैन परंपरामां आध्यात्मिक विकासक्रमनुं निरूपण चौद भूमिकाओ (गुणस्थानो) द्वारा करवामां आवे छे. आ जैन परिपाटी छे. तेथी जैन परिभाषानो प्रचुर प्रयोग होय ए स्वाभाविक छे. तेना बदले योगदृष्टिसमुच्चयमां आध्यात्मिक उत्क्रांति मुख्यपणे आठ योगदृष्टिओ द्वारा समजाववामां आवी छे. वळी, बीजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy