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श्रीसीमंधरस्वामी लेख/पत्र
___ कर्ता : श्रीजयवंतसूरि
(१) (राग : सामेरी) स्वस्ति श्री पुंडरगिणी मोरु सगुण सीमंधरस्वामि मुहि बोलतां अमृत झरई मनोहर मोहन नाम गुणकमल तोरइ वेधीउ मनभ्रमर मुझ रस पूरि तुझ भेटवा अलजउ घणउ किम करुं थानक दूरि रे. वाहला तुं परदेसि जई रह्यउ रे दूरि नयण मेलावउ रे वाहला लेख लेखवयो प्रीतडी रे संदेसई व्यवहार वाहला.
आंकणी. १ अणदीठइ अलजउ घणउ मन तपइ मिलवा काजि तुझ देखवा मुख-चंदलउ दोइ नयण करइ रुहाडि जव सुपन मांहि तुं मिलि तव हर्ष हीइ न माई है है रे दैव अटारडु वइरणी रयणी विहाइ रे.
वाहला तुं. २ रे सूडिला तोरी पांखडी मुझ आपि करि उपगार नयण संतोष जइ करुं न खमाइ वेध विकार. जे जाई घडीघडी ते विना ते वरस सरीखी थाई विरहीयां हुइ उतावला, खिण एक विलंब न खमाई रे.
वाहलां. ३ रे दैव तिइं एक देसडि सिंया न कीआ दोई अवतार ? दिन प्रतिइं नयन मेलावडइ संतोष हुंत अपार परदेसि वाहलां वेगलां जिउ तपइ मिलवा काजि जउ पंख सरजइ दैव तुं, तु ऊडी मिलुं हुं आज रे.
वाहलां. ४ डुंगर दरीआ विचि वहइ अति विषम अवघट वाट मनि मिलण मोह धरूं घणुं तुह्म विना अंग उचाट
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