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थवी जोईए. धर्मांतरित प्रजाना सर्जकोए तळपदां गुजराती साहित्य स्वरूपो खपमां लीधां अने प्रभाव झीलीने परंपराने समृद्ध करवामां, विस्तारवामां जे योगदान आप्युं ए पण एक महत्त्वनुं प्रकरण इतिहास माटे बनवु जोईए.
(१२) वैष्णव संप्रदायना हालारी लोहाणा परंपराथी फंटाया अने एक नूतन संप्रदाय अस्तित्वमां आव्यो ते 'प्रणामी पंथ' तथा ए ज रीते वैष्णवमांथी फंटायेल अने उद्भवेल 'स्वामीनारायण पंथ' आवा पंथो-संप्रदायोना उद्भव परिबळोने पण इतिहासलेखनमां स्थान मळवुं जोईए. प्रणामी संप्रदायना परिव्राजक कवि प्राणनाथ स्वामी बहुभाषी कवि छे. एनी पाछळनुं परिबळ, स्वामीनारायण संतकवितानी तळपदी बानी पाछळनुं परिबळ ध्यानमा लेवां अनिवार्य छे.
(१३) मध्यकाळमां मुस्लिम मोगल राजवीओ समक्ष खतपत्रो, वादविवादो, प्रतिवादना प्रसंगो एक संप्रदायने उपस्थित थयेला. जैन हीरविजयसूरी, प्राणनाथ अने अन्य पंथना संतोना आवा प्रसंगो साहित्यसर्जन संदर्भमां खूब महत्त्वना होय छे. सांस्कृतिक संदर्भ एमां निहित होय छे. एमांनां तथ्यो, परंपरामां प्रचलित विगत अने लोकसांस्कृतिक आधारसामग्रीनी चकासणी, मूलवणी अने अंते एने कृति - कर्ता मूल्यांकन संदर्भे स्थान मळवुं जोईए. आ बधुं संदर्भात्मक साहित्य (रेफरन्शियल लिटरेचर) आवा संदर्भों द्वारा ज उकले मर्मकोश सुधी आपणने पहोंचाडे. एटले इतिहासलेखनमां आ सामग्री पण समाविष्ट थवी जोईए.
(१४) मध्यकालीन साहित्य सर्जननी प्रवृत्ति अने प्रेरकबळोनी विगतो खूब महत्त्वनी जणाई छे. आपणे त्यां महेताजीओ, कथाकारोने कथा कही संभळावे अने एनी असरतळे आख्यानसर्जन थाय एवा निर्देशो अनेक आख्यानकारोए कर्या छे. मध्यकालीन दस्तावेजी सामग्रीमां पाठशाळाकाव्यशाळाना निर्देशोयुक्त दानपत्रो, खतपत्रो, काव्यप्रतो मळे छे. भूजनी 'राओ लखपत व्रजभाषा पाठशाळा' चारसो वर्ष सुधी क्रियाशील रहीने पचास वर्ष पूर्वे ए बंध पडी एनी विगतो - इतिहास एकत्र
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