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तेणे हस्तप्रतोने संदर्भे इतिहासआलेखन कर्यं होईने इतिहासलेखनमां, अमुद्रित पण सूचिपत्रमां निर्दिष्ट एवी कृतिओनो पण अभ्यास करीने एने समाववी जोईए, तेवी विभावनानो परिचय मळे छे. तेमणे साहित्यना इतिहास निमित्ते भाषाना विकासनो इतिहास चर्चवानुं पण मुनासिब मान्युं छे. ए निमित्ते तेमनी पासेथी आपणने गुजराती भाषानुं ऐतिहासिक व्याकरण प्राप्त थाय छे. स्वरूपना प्रभावने कारणे तेमणे नामकरणमां नोमेन्कलचरमां रासयुग, आख्यानयुग एम विभाजन कर्तुं छे. इतिहासलेखके स्वरूपना प्रभावनी विगतो पण ध्यानमां लेवानी रहे. कृतिनो कडीक्रमानुसार परिचय, कृतिनी पदबंधनी विगतो एमां परंपरासंदर्भे आवेल पलटाओ, वर्णनकलाना उत्तम नमूनारूप दृष्टांतोने उदाहृत करवानी एमनी दृष्टि तथा प्राचीन हस्तप्रतोने मेळवीने एमांथी पसार थईने विगतो निर्देशवी ए एमनी अभ्यासनिष्ठानुं सुंदर उदाहरण छे. एमांथी आपणी पासे इतिहासलेखननी आगवी विभावना प्राप्त थाय छे.
(६) अनंतराय रावळनुं कार्य प्राप्त मुद्रित सामग्रीने आधारे विश्लेषण करीने इतिहासलेखननुं उदाहरण पूरुं पाडे छे. डॉ. धीरुभाई ठाकर ट्रंकमां ए ज दृष्टिबिंदुथी काम चलावे छे.
मूळभूत वस्तु तो आपणी पासे पुरोगामीओनी परंपरा छे पण एनं तेजस्वी अनुसंधान सातत्य जळवाय ए जरूरी छे. त्रिपाठी, झवेरी, अंजारिया, मुनशी, के. का. शास्त्री आदिनी इतिहासलेखननी विभावना आपणे तेमना कार्यना परिचय द्वारा बहु ज ट्रंकमां मेळवी, ए बधी विगतो इतिहासआलेखनमां अत्यंत महत्त्वनी छे. समाज, संस्कृति, भाषा व्याकरण, पदबंध, युगविभाजन आदि बाबतोनुं ऊंडी सूझथी सभर अने भारतीयसंदर्भमां विश्लेषणयुक्त मूल्यांकन मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखन निमित्ते प्राप्त थाय छे. आ उपरांत मारा वांचवामां आवेल भोपाल स्थित साहित्य संस्था भारत भवननुं 'बहुवचन' नामनुं जर्नल, तथा नामवरसिंहकृत 'दुसरी परंपराकी खोज' पुस्तक उपरांत रेने वेलेक कृत 'थीयरी ओफ लिटरेचर' अने एच. ए. वीझर संपादित
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