________________ PRES आज का पहला सूत्र–'अहिंसा सब आश्रमों का स्रोत एक है। जा हृदय, सब शास्त्रों का रहस्य और सब व्रतों और अमृत की कहीं और खोज मत करना। जो तुम्हारे जीवन में गुणों का पिंडभूत सार है।' / आज जहर की तरह है, वहीं से अमृत भी निकलेगा, थोड़ा मंथन सव्वेसिमासमाणं, हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं। चाहिए। ऐसा समझो कि अमृत जहर का ही नवनीत है। सव्वेसिं वदगुणाणं, पिंडो सारो अहिंसा हु।। एडोल्फ हिटलर के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि वह चित्रकार महावीर की सारी देशना इस सूत्र में संचित है। अहिंसा का होना चाहता था। कुछ बनाना चाहता था सुंदर, लेकिन अर्थ समझ लें तो सारा जिन-शास्त्र समझ में आ गया। मनुष्य | चित्रशाला में उसे प्रवेश न मिला। वह असफल हो गया प्रवेश ऊर्जा है, शुद्ध शक्ति है। इस शक्ति के दो आयाम हो सकते हैं। की परीक्षा में। और उसी दिन से उसके जीवन में जो अमृत हो या तो शक्ति विध्वंसक हो जाए-मिटाने लगे, तोड़ने लगे। या | सकता था वह जहर होने लगा। बनाने की आकांक्षा मिटाने की शक्ति सृजनात्मक हो जाए-बनाये, बसाये, निर्माण करे। आकांक्षा में बदल गयी। एडोल्फ हिटलर ने बड़ा विध्वंस शक्ति तो हमारे पास है। कैसा हम उपयोग करेंगे शक्ति का, | किया। अगर महावीर को अहिंसा का शास्त्र पता है, तो एडोल्फ हमारे बोध पर, हमारे ध्यान पर, हमारी समझ पर निर्भर है। हाथ हिटलर को हिंसा का शास्त्र पता है। इससे ज्यादा वीभत्स और में तलवार दे दी है प्रकृति ने। हम मारेंगे या बचायेंगे हम पर विकराल दृश्य किसी मनुष्य ने कभी उपस्थित न किया था। मगर निर्भर है। हाथ में रोशनी दे दी है प्रकृति ने। हम अंधेरे को तोड़ेंगे| होना चाहता था चित्रकार। या घरों को जलायेंगे हम पर निर्भर है। और भी विचारणीय बात है कि इतने विध्वंस, हिंसा और शक्ति सृजनात्मक हो जाए, तो अमृत हो जाती है। शक्ति विनाश के बीच भी उसकी मूल आकांक्षा समाप्त नहीं हो गयी। विध्वंसात्मक हो जाए तो जहर हो जाती है। भाषाकोश में तो जब उसे फुर्सत मिलती तो वह कागज पर छोटे-मोटे चित्र लिखा है कि जहर और अमृत अलग-अलग चीजें हैं। जीवन के बनाता। जीवन के अंतिम क्षण तक कहीं कोई ऊर्जा सृजनात्मक कोश का ऐसा सत्य नहीं। जीवन के कोश में तो लिखा है कि | होने की खोज करती रही। जो गीत गाना चाहता था, उससे अमृत का ही विकृत रूप जहर है। और जहर का ही सुकृत रूप गालियां निकली। अमृत है। ध्यान रखना, वे ही शब्द, वही ध्वनि गाली बन जाती है; वे ही हिंदुओं की पुरानी कथा है सागर-मंथन की। उसमें एक ही शब्द, वही ध्वनियां गीत बन जाती हैं। मनुष्य सृजनात्मक ऊर्जा मंथन से जहर भी निकला, उसी मंथन से अमृत भी निकला। है। अगर सृजन न हो पाये, तो जीवन में विस्फोट होता है घृणा एक ही स्रोत से जहर भी आया, उसी स्रोत से अमृत भी आया। का, हिंसा का, विद्वेष का। 1163 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org