________________ प्रेम का आखिरी विस्तार : अहिंसा आपरेशन में ही मरा, लेकिन फिर भी उसकी कोई भावदशा न किया होगा। दबाया होगा जबर्दस्ती। जो व्यक्ति कामवासना थी। द्रव्य-हिंसा तो हुई, आदमी मरा, लेकिन कोई अभिप्राय न | को दबा लेता है, उसे सब तरफ कामवासना दिखायी पड़ने था। इसलिए पाप का कोई कारण नहीं है। | लगती है। जिस व्यक्ति ने कामवासना को दबाया नहीं, समझा 'किसी प्राणी का घात हो जाने पर जैसे संयत या असंयत | है, उसे फिर कहीं कामवासना नहीं दिखायी पड़ती। जिसे तुमने व्यक्ति को द्रव्य तथा भाव दोनों प्रकार की हिंसा का दोष लगता दबाया, वही तुम्हारी आंख से उभर-उभरकर तुम्हें सब जगह है, वैसे ही चित्तशुद्धि से युक्त, समितिपरायण साधु द्वारा दिखायी पड़ेगी। दमन मुक्ति नहीं है। दमन बड़ा गहरा बंधन है। मनःपूर्वक किसी का घात न होने के कारण उसके द्रव्य तथा भाव, अब सोचो, अगर यह 'स्वामी नारायण संप्रदाय' को दोनों प्रकारों की अहिंसा होती है।' माननेवाले सज्जन महावीर को मिल जाएं, तो यह तो घबड़ा ही 'यत्नाचार धर्म की जननी है। यत्नाचारिता ही धर्म की जाएंगे कि यह आदमी नग्न खड़ा है! यह तो बड़ी अनैतिक बात पालनहार है। यत्नाचारिता धर्म को बढ़ाती है। यत्नाचारिता है, बड़ी अश्लील बात है। अशोभन है। अशिष्ट है। ऐसा ही एकांत सुखावह है।' हुआ था। महावीर को गांवों से खदेड़ा गया, मारा गया। क्योंकि जयणा उ धम्मजणणी, जयणा धम्मस्स पालणी चेव। उनका नग्न होना दूसरों को पीड़ादायी हो गया। महावीर किसी यत्नपूर्वक जीना धर्म की जन्मदात्री है। यत्नपूर्वक जीना धर्म को पीड़ा नहीं देना चाहते। वह वस्तुतः नग्न इसलिए हुए कि वे की पालनकर्ता है, धारणकर्ता है। यत्नाचारिता धर्म को बढ़ाती नैसर्गिक होना चाहते हैं। स्वाभाविक होना चाहते हैं। नग्न है। यत्नपूर्वक-राह चलते, उठते-बैठते सब तरफ होश रखना, आदमी पैदा हुआ है, नग्न ही विदा होगा, तो बीच में वस्त्र ढांकने तुम्हारे कारण किसी को दुख न पहुंचे। फिर भी किसी को दुख का क्या प्रयोजन! इसलिए महावीर नग्न हुए। महावीर की पहुंचे, वह उसका अपना भीतरी कारण होगा, तुम्हारा कुछ नग्नता तो वैसी निर्दोष है, जैसे छोटे बालक की। लेकिन लेना-देना नहीं। देखनेवालों को जो वही दिखायी पड़ा तो उनकी आंखों में भरा दुख तो महावीर के कारण तक लोगों को पहुंच जाता है। वह था। उन्होंने तो देखा कि यह बात कुछ गड़बड़ है। यह आदमी तो नग्न खड़े हैं। किसी को दुख हो जाता है कि यह आदमी नंगा तो समाज को तुड़वा देगा। शिथिल करवा देगा। जिस व्यक्ति क्यों खड़ा है? यह जिम्मेवारी उस आदमी की है। महावीर के आधार पर समाज सदा के लिए सुदृढ़ स्तंभ रख सकता था, उसके लिए नग्न नहीं खड़े हैं। यह उसकी ही भावदशा है। वह अनैतिक मालूम पड़ा लोगों को। उसे हटाया लोगों ने अपने एक मित्र ने प्रश्न किया है कि वह यहां संन्यास लेने आये थे। गांवों से। लेकिन उनका भरोसा, विश्वास ‘स्वामी नारायण संप्रदाय' में खयाल रखो, जो तुम्हारे भीतर है, वही दिखायी पड़ता है। यह है। तो उन्होंने पूछा है कि 'स्वामी नारायण संप्रदाय' में संन्यास | भी हो सकता है तुम किसी को दुख न देना चाहो, लेकिन फिर भी लूं या यहां? क्योंकि वहां तो ब्रह्मचर्य पर बड़ा जोर है, सख्ती | किसी को दुख पहुंच जाए। पर यह उसकी बात है। यह वह है। और यहां ऐसा लगता है कि आपका ब्रह्मचर्य पर कोई जोर | जाने। यह उसकी समस्या है। तुम अपने भीतर किसी को दुख नहीं है। और आपके संन्यासी शिथिल मालम होते हैं। उनको देने का भाव न रखना। तुम अपने भीतर किसी के विध्वंस की दुविधा पैदा हुई है। पूछा है कि बड़े द्वंद्व में पड़ गया हूं। द्वंद्व में आकांक्षा न करना। तुम किसी के विनाश का बीज अपने भीतर पड़ने की कोई जरूरत नहीं। तुम संन्यास लेना भी चाहो, तो मैं न | मत बोना। तुम निखालिस, तुम पवित्र रहना। तुम प्रेमपूर्ण दूंगा। इसलिए द्वंद्व छोड़ो। तुम रुग्ण हो। दूसरे संन्यासी क्या रहना। और तुम यत्नपूर्वक जीना। और एक-एक कदम रखना कर रहे हैं, इससे तुम्हारा प्रयोजन ही नहीं है। कौन शिथिल है, होगा। पहले तो भाव में बदलाहट करनी होगी। तभी बाहर कौन शिथिल नहीं है, तुमसे किसी ने पूछा नहीं है। तुम अपने बदलाहट होगी। लिए ही निर्णय लो। जिनने पूछा है, इस व्यक्ति ने निश्चित | जमीं सख्त है, आसमां दूर है 'स्वामी नारायण संप्रदाय' के प्रभाव में कामवासना का दमन बसर हो सके तो बसर कीजिए Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org