________________ प्रेम है द्वार से भयभीत कर दिया है। उस भय के कारण तुम अकेले पड़े रह लेना कि प्रेम से बचना मत। पुरुष तो प्रेम से बचकर भी कभी गये हो। तुम भटकते हो, लेकिन परमात्मा से कोई साथ नहीं बन पहुंच सकता है। ध्यानी तो प्रेम को छोड़कर भी पहुंच सकता है। पाता। तुम्हारे पास हाथ नहीं, जो परमात्मा का हाथ पकड़ लें। कठिन होगी डगर, बड़ी कठिन होगी–सरल हो सकती थी, प्रेम वही हाथ तुम्हें देगा। गीत, रस भरी हो सकती थी-रूखी-सूखी होगी डगर, धूल हर अंधेरे को उजाले में बलाना है मझे धवांस भरी होगी, कंकड़, पत्थर, कंटकाकीर्ण होगा मार्ग, फूल की गंध से तलवार को सर करना है लेकिन पहुंच सकता है। लहूलुहान पहुंचेगा, लेकिन पहुंच जीवन कठिन है, तलवार-जैसा है। सकता है। लेकिन स्त्री तो बिना प्रेम के पहंच ही नहीं सकती। फूल की गंध से तलवार को सर करना है वह खो ही जाएगी इस डगर में।। और जीतना है प्रेम से। यही तो चुनौती है। यही तो अभियान दुनिया में दो ही धर्म वस्तुतः होने चाहिए। दो ही धर्म वस्तुतः है मनुष्य का। यही तो मनुष्य की उत्क्रांति है। विकास! या जो हैं। एक स्त्री का धर्म, एक पुरुष का धर्म। और दुनिया के सारे भी कहो। यही तो मनुष्य के रूपांतरण की कीमिया है। धर्म दो हिस्सों में बांटे जा सकते हैं। पुरुष का धर्म कहता है, फूल की गंध से तलवार को सर करना है | छोडो प्रेम। स्त्री का धर्म कहता है. बनाओ प्रेम को पजा। लेकिन जीतना है प्रेम से इस संसार को। जीतना है प्रेम से इस देह प्रेम होगा, तो ही तो पूजा बनेगी! को। जीतना है प्रेम से इन इंद्रियों को। जीतना है प्रेम से इस मन जिसने पूछा है, उसे मैं कहूंगा, घबड़ाओ मत। जीवन अनुभव को। जीतना है प्रेम से पर को, स्व को। के लिए है। इसे बंद कोठरी मत बनाओ। गुफा में मत छिपो। फूल की गंध से तलवार को सर करना है खुलो, आने दो हवाएं, आने दो नयी सूरज की किरणें। जीओ। और गा-गा के पहाड़ों को जगाना है मुझे खतरनाक है जीना। लेकिन खतरा जीवन का लक्षण है। सुरक्षा और गीत गाकर ही जगाना है। झकझोर कर नहीं। कोई | में मौत है, सुरक्षा में कब्र है। उतरो। तूफान आयेंगे प्रेम के, | बिजली के धक्के देकर नहीं; गीत गा-गा के! जैसे मां सुबह झेलना। उन्हीं तूफानों में तुम्हारे भीतर कुछ सोया हुआ जगेगा, किसी को उठाती है। एक गीत गाती है। या रात अपने बेटे को कोई चट्टान टूटेगी, निर्झर बहेगा। और घबड़ाना मतसुलाती है, एक लोरी गाती है। जो मैं तुमसे बोले चला जाता हूं, रात इधर ढलती है तो दिन उधर निकलता है वह कुछ और नहीं है। तुम्हारे भीतर के पहाड़ को जगाना है। कोई यहां रुकता है तो कोई वहां चलता है गीत गा-गा के पहाड़ों को जगाना है मुझे एक द्वार बंद हुआ नहीं कि दूसरा खुल ही जाता है। - और सारे जागरण का सूत्र है—प्रेम। दीप और पतंगे में फर्क सिर्फ इतना है डरो मत। प्रेम मिटाता है। निश्चय ही मिटाता है। लेकिन प्रेम | एक जल के बुझता है एक बुझ के जलता है जन्माता भी है। प्रेम सूली है, सच। प्रेम सिंहासन भी है। और पतंगे बन सको तो पतंगे बनो। दीया बन सको तो दीया बनो। जो सूली चढ़ता है, वही सिंहासन पर पहुंचता है। लेकिन दीया भी जलता है और पतंगा भी जलता है। दीया रात इधर ढलती है तो दिन उधर निकलता है जलकर बुझता है, पतंगा बुझकर जलता है। कोई भी बनो। दीये कोई यहां रुकता है तो कोई वहां चलता है बनो या पतंगे बनो। पतंगों की प्रशंसा में तो बहुत गीत लिखे गये दीप और पतंगे में फर्क सिर्फ इतना है हैं कि पतंगा जलता है, दीवाना है। दीये की प्रशंसा की किसी ने एक जल के बुझता है एक बुझ के जलता है फिकिर नहीं की कि दीया भी पतंगे के लिए ही जल रहा है, कि प्रेम जलाता है। लेकिन जगाता भी है। प्रेम मिटाता है। आओ, कि प्रतीक्षा कर रहा है। जहां पतंगे और दीये का मिलना लेकिन जन्माता भी है। प्रेम मृत्यु है और महाजीवन की शुरुआत होता है, जहां दोनों अलग-अलग मिट जाते हैं और एकरूप हो भी। व्यर्थ की निंदा छोड़ो। चलो प्रेम की डगर पर। और प्रश्न जाते हैं, वहीं प्रेम का जन्म है। पूछा है किसी स्त्री ने। इसलिए तो और भी जरूरी है यह समझ | परमात्मा से जब जुड़ोगे जुड़ोगे, अभी किसी छोटे परमात्मा से 157 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org