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________________ सकती। वह अभी सज ही रही है। अभी वह साड़ी ही चुन रही आ भी जाए सुख देने, तो भी तुम द्वार बंद कर लोगे। तुम है। पति भन्नाये जा रहे हैं। लेकिन अब करोगे भी क्या? अब | कहोगे, दुख से अब पुराना नाता बन गया। अब छोड़े नहीं इस वक्त झगडा-झांसा खडा करना और देर करवा देगा। इस बनता। अब संग-साथ छोड़ना संभव नहीं है। इसी तरह मनष्य वक्त शांति से पी जाना ही ठीक है। यह परोक्ष आक्रमण है। के भीतर दुखवाद पैदा होता है। तो अगर हो सकता है, तुम्हारी पत्नी को प्रार्थना-पूजा से कोई जो लोग दुखवादी हैं, वे प्रथम सभी सुखवादी थे। सुख की रस भी न आ रहा हो, लेकिन चूंकि तुम जिद्द किये जा रहे हो कि खोज में गये थे, लेकिन सुख तक पहुंच न पाये। न पहुंचने से ध्यान करो, तो एक बात तो पक्की है कि वह ध्यान न करेगी। यह सिद्ध नहीं होता कि सुख नहीं है। इससे इतना ही सिद्ध होता और ध्यान न करने के लिए ही हो सकता है पूजा-प्रार्थना में है कि तुम्हारे पहुंचने में कहीं भूल-चूक रही। तुमने कुछ गलत उलझी हो। तुम हटा लो अपना विरोध। तुम उससे जाकर क्षमा दिशा में खोजा। तुमने ठीक से नहीं खोजा। या पूरी त्वरा और मांग लेना कि अब तक जो कहा-सुना, सब भूल थी, गलत था, | शक्ति से नहीं खोजा। तुमने पूरा अपने को दांव पर नहीं मुझे माफ कर दे; अब मेरा कोई आग्रह नहीं कि तू ध्यान कर, | लगाया। इतना ही सिद्ध होता है। सुख तो है। लेकिन सुख अब तो तू जो कर, वही ठीक है। प्रार्थना कर, पूजा कर, मीरा भी मिलता है बड़ी गहन खोज से। लेकिन रास्ते में धीरे-धीरे कष्ट पहुंची, तू भी पहुंच सकती है। तब तुमने उसे छुट्टी दे दी। अब और कष्ट और कष्ट झेलते-झेलते तुम्हारा कष्ट के साथ वह सोचेगी कि वस्तुतः उसे मिल रहा है रस, या सिर्फ तुम्हारा संग-साथ बन गया। तुम्हारी दोस्ती कष्ट से हो गयी। अब तो विरोध करने का रस था? अब पुराने रस का तो कोई कारण न तम्हें ऐसा डर लगेगा कि कहीं कष्ट छट न जाए। नहीं तो अकेले रहा। अगर विरोध का ही रस था, तो वह तो खतम हो गया। हो जाएंगे। इस तरह दुखवाद पैदा होता है। विरोध ही खतम हो गया। तो रस मिल रहा होगा, तो ठीक। न स्त्रियों में यह दुखवाद पुरुष से ज्यादा जल्दी पैदा हो जाता है। मिल रहा होगा, तो वह ध्यान की तरफ अपने-आप आ जाएगी। फिर दुख में एक रस-रुग्ण रस! उसे तुम बहुत मूल्य मत लेकिन तुम लाने की चेष्टा छोड़ दो। कोई किसी को जबर्दस्ती देना। फिर वह दुख के गीत गाने लगती हैं। परमात्मा की तरफ कभी नहीं ला पाया है। विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात वेदना में जन्म, करुणा में मिला आवास तीसरा प्रश्नः सोचती हूं दुख से छूटने के लिए किसी का अश्रु चुनता दिवस इसका अश्रु गिनती रात... सहारा पकडूं, किसी के प्रेम के साये में बैलूं, लेकिन उसके न लेकिन फिर दुख को ही गीत बना लिया जाता है। फिर आंसू मिलने पर भी संतोष ही होता है कि कम से कम अपना दुख गिनने में ही समय व्यतीत होने लगता है। फिर आदमी अपने और किसी की उपेक्षा तो साथ में है। कृपया बतायें कि ऐसा घाव के साथ ही खेलने लगता है। फिर पीड़ा होती है तो अच्छा क्यों होता है? | लगता है। कछ तो हो रहा है। ऐसा तो नहीं कि खाली हैं। इसको खयाल रखना, आदमी खाली होने के बजाय दुखी होना मनुष्य बहुत जटिल है। सुख की खोज करता है। सुख न पसंद करता है। कम से कम दुख में कुछ भराव तो है। बिलकुल मिले, तो दुख से राजी हो जाता है। क्योंकि खोज की भी एक | खाली होना कठिन मालूम होता है। या तो सुख, या दुख; खाली सीमा है। फिर खोजते ही चले जाना व्यर्थ श्रम मालूम होता है। होने को कोई भी राजी नहीं। और यहां जीवन का एक बड़ा परम तो दुख से राजी हो जाता है। राजी ही नहीं होता, एक तरह का सत्य स्मरण में रखने योग्य है—जो खाली होने को राजी है, वही दुख में रस लेने लगता है। यह बड़ी खतरनाक चित्त की दशा है। सुख को उपलब्ध होता है। अगर दुख में तम रस लेने लगे, तब तो तमने सुख के सब द्वार तो जितने लोग सुख की खोज करते हैं, वे धीरे-धीरे दुख से बंद कर दिये। दुखी रहते-रहते, बहुत दिन तक दुखी रहते-रहते राजी हो जाते हैं। फिर दुख को पकड़कर बैठ जाते हैं। दुख ही दुख के साथ संग बन गया, संबंध बन गये। फिर तो अगर कोई उनका शृंगार हो जाता है। फिर वे दुख के गीत गाते हैं। फिर दुख 151 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340139
Book TitleJinsutra Lecture 39 Prem hai Dwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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