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________________ आज के सूत्र अत्यंत मौलिक और क्रांतिकारी हैं। बड़ा अकेला विचरता है। सिंह किसी संगठन का हिस्सा नहीं होता। ना साहस चाहिए ऐसे सत्रों को अभिव्यक्ति देने के सिंह किसी संप्रदाय में नहीं बंधता। सिंह मुक्त विचरता है। न लिए। महावीर ही ऐसे सूत्र दे सकते हैं। कोई शास्त्र, न कोई संप्रदाय, न कोई परंपरा, तब कहीं पहला सूत्र है: 'सिंह-सा पराक्रमी, हाथी-सा स्वाभिमानी, सिंह-जैसा चित्त पैदा होता है। अपने ही पैरों पर, अपने ही बल, वृषभ-सा भद्र, मृग-सा सरल, पशु-सा निरीह, वायु-सा और अकेला। नितांत अकेला। महावीर बारह वर्षों तक सिंह की निसंग, सूर्य-सा तेजस्वी, सागर-सा गंभीर, मेरु-सा निश्चल, | तरह विचरे। अकेले। न किसी से बोलते, न किसी को चंद्रमा-सा शीतल, मणि-सा कांतिवान, पृथ्वी-सा सहिष्णु, संगी-साथी बनाते, न किसी के संगी-साथी होते। वनों में, सर्प-सा अनियत-आश्रयी तथा आकाश-सा निरालंब साधु ही | पहाड़ों में, महावीर की वह मौन गर्जना सिंहनाद थी। परमपद मोक्ष की यात्रा पर है।' "सिंह की तरह पराक्रमी...।' सब कुछ लगा देना होगा। एक-एक प्रतीक को ठीक से समझ लेना जरूरी है। दांव पर अगर कुछ भी लगाने से बचा लिया, तो चूक जाओगे। 'सिंह-सा पराक्रमी...।' थोड़ा-सा सोचा कि बचा लें, थोड़ा अधूरा दांव पर लगाया, तो महावीर का मार्ग आत्यंतिक संकल्प का मार्ग है। महावीर का चक जाओगे। महावीर के मार्ग पर तो जुआरी का काम है, मार्ग समर्पण का नहीं, संकल्प का है। महावीर के मार्ग पर कोई दुकानदार का नहीं। और दुर्भाग्य कि सब दुकानदार महावीर के सहारा नहीं खोजना है। सब सहारे छोड़ देने हैं। बेसहारा हो मार्ग पर हैं। महावीर का धर्म ही दुकानदार का हो गया। महावीर जाना है। सहारे में भय है। बेसहारा हो जाने में अभय है। का माननेवाला दुकानदारी के सिवाय और कुछ करता ही नहीं। महावीर का मार्ग भक्ति के ठीक विपरीत है। दोनों मार्ग से यह भी अकारण नहीं घटता। लोग पहुंच जाते हैं। दोनों मार्ग सही हैं। लेकिन महावीर के मार्ग | इसके पीछे भी बड़े मनोवैज्ञानिक कारण हैं। विपरीत का को ठीक से समझना हो, तो भक्ति के विपरीत रखकर ही समझ आकर्षण। दुकानदार सदा ही जुआरी से प्रभावित होता है। जो पाओगे। महावीर के मार्ग पर न भगवान की कोई जगह है, न हिम्मत वह नहीं कर सकता, जुआरी कर लेता है। तो भला खुद भक्ति की कोई जगह है। न पूजा की, न अर्चना की, न प्रार्थना | जुआरी न बने, लेकिन जुआरी के प्रति मन में प्रशंसा होती है। की। शरणागति का कोई स्थान नहीं है। महावीर ने कहा है, कमजोर हमेशा बहादुर से प्रभावित होता है। खुद बहादुर नहीं है, अशरण हो जाओ। कोई शरण मत गहो। इसीलिए प्रभावित होता है। जो अपने में नहीं है, वह दूसरे में 'सिंह-सा पराक्रमी...।' सिंह अकेला विचरता है। सिंहों के दिखायी पड़ता है। तो कमजोर हमेशा बहादुर की पूजा करता है। नहीं लेहड़े, साधु चलें न जमात। सिंह की भीड़ नहीं होती। | विपरीत का बड़ा आकर्षण है। स्वभावतः निर्धन आदमी धनी की 125 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340138
Book TitleJinsutra Lecture 38 Dhyan ka Dip Jalalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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