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________________ ध्यान का दीप जला ला। HARERNA BHAI जरूरी हैं। प्रबुद्धता और उपशांति। अगर तुम सिर्फ शांत हो जागो! जागो फिर एक बार। जाओ और प्रबुद्ध न होओ, तो नींद में खो जाओगे। नींद में हम प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें सभी शांत हो जाते हैं। लेकिन नींद कोई मंजिल नहीं है। अगर जागो! जागो फिर एक बार। तुम प्रबुद्ध हो जाओ, बहुत जागे हुए हो जाओ, और शांत न हो | महावीर के सभी वचन अंततः अप्रमाद पर पूरे होते हैं। वे सको, तो तुम पागल हो जाओगे। क्योंकि विश्राम तुम्हें मिल न कहते हैंसकेगा। जो आदमी सात दिन न सो पाये, वह विक्षिप्त होने | जागो, फिर एक बार! कहते हैं. तीन सप्ताह जो आदमी न सोये. वह और इसके बाद का सत्र तो बहत सोचने जैसा है। सोचना। सुनिश्चित रूप से पागल हो जाएगा। विश्राम भी चाहिए। 'भविष्य में लोग कहेंगे, आज जिन दिखायी नहीं देते...।' तो महावीर का सूत्र है : 'प्रबुद्ध और उपशांत'; एक साथ। भविष्य में लोग कहेंगे, महावीर खो गये। शांत भी बनो और जागे हुए भी बनो। यह दोनों साथ-साथ बढ़ें, भविष्य में लोग कहेंगे, आज जिन दिखायी नहीं देते, और जो अलग-अलग नहीं। अगर तुम प्रबुद्ध न हुए तो नींद में खो मार्गदर्शक हैं वे भी एकमत नहीं हैं। किंतु आज तुझे गौतम, जाओगे। नींद अच्छी है, सुखद है, लेकिन सुख ही थोड़े गंतव्य न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है। गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।' है। परम आनंद न मिलेगा, मोक्ष न मिलेगा। मोक्ष तो जागे हुए महावीर कहते हैं, सदियों तक फिर लोग पूछेगे, कहां पायें के लिए है। लेकिन अगर तुम सिर्फ जागने ही लगो, और अनिद्रा जिन-जैसा शास्ता? महावीर-जैसा सदगरु? और अभी. मैं को तुम समझ लो कि साधना है, और शांत होना खो जाए, तो मौजूद हूं, महावीर कहते हैं गौतम से, तेरे सामने हूं गौतम, और तनाव से भर जाओगे। तनाव तुम्हें तोड़ देगा। दोनों का अभी तू सो रहा है। फिर सदियों तक लोग रोयेंगे और साथ-साथ जोड़ चाहिए। अनुपात दोनों का बराबर चाहिए। पछतायेंगे। और त सामने मौजद है। मार्ग तेरी आंखों के सामने आधा-आधा। और सम्यक-रूप से साधना में जानेवाले व्यक्ति | बिछा है। तू किस लिए बैठा है? उठ! को निरंतर याद रखनी चाहिए कि इन दो में से किसी की भी मात्रा | ‘भविष्य में लोग कहेंगे, आज जिन दिखायी नहीं देते...।' ज्यादा न हो पाये। अमृत भी बे-मात्रा हो, तो जहर हो जाता है। ण हु जिणे अज्ज दिस्सई, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए। और जहर भी मात्रा में लिया जाए तो औषधि बन जाता है। तो और महावीर कहते हैं कि और जो मार्गदर्शक होंगे, वे आपस एक तरफ शांति को बढ़ाओ और एक तरफ जागरण को। में एकमत न होंगे। महावीर अपने ही मार्ग पर पड़ जानेवाली "हे गौतम, शांति का मार्ग बढ़ा! हे गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद शाखाओं, विशाखाओं की बात कर रहे हैं। कह रहे हैं, अभी मत कर!' एक क्षण भी बेहोशी में मत गंवा। मार्ग बिलकुल एकजुट है। पगडंडियां अलग-अलग टूटी नहीं। जागो फिर एक बार। अभी मार्ग राजपथ-जैसा है: तू चल! भविष्य में लोग पूछेगे, प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें जिन कहां हैं? कहां उनके दर्शन हों, जो मार्ग दिखायें? और जो अरुण-पंख तरुण-किरण मार्ग दिखानेवाले लोग होंगे रास्ते पर, कोई 'तेरापंथी' होगा, खड़ीखोल रही द्वार कोई ‘दिगंबर' होगा, कोई 'श्वेतांबर' होगा। पंथों में और जागो फिर एक बार। छोटे पंथ होंगे और हजार मत होंगे। और बड़ा संघर्ष होगा। और आंखें अलियों-सी अभी मार्ग सुस्पष्ट है, गौतम! तू क्यों बैठा है ? उठ! किस मधु की गलियों में फंसी, जागो फिर एक बार! बंद कर पांखें प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें। पी रहीं मधु मौन, महावीर, बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट, कितने तारों ने तुम्हें जगाया है! अथवा सोयीं कमल कोरकों में? प्यारे, जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें। बंद हो रहा गुंजार 'न्यायपूर्ण मार्ग तुझे उपलब्ध है। गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद 135 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibray.org
SR No.340138
Book TitleJinsutra Lecture 38 Dhyan ka Dip Jalalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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