________________ जिन सूत्र भागः1 कहता है हानि किसी को पहुंचाना ही नहीं। वह स्वयं भी हानि जायेगा कैसे? दिखाई पड़नेवाले से जो डर रहा है वह अदृश्य नहीं पहुंचाता, क्योंकि हानि पहुंचाने में हानि उठाने का खतरा भी की यात्रा पर तो कैसे कदम उठायेगा? जहां भीड़ है, संगी-साथी जुड़ा है। वह किसी को मारता भी नहीं है, क्योंकि मारने जाने में हैं, परिवार है, मित्र हैं, उस रास्ते पर, राजपथ पर चलने से डर अपने मारे जाने की भी संभावना खुलती है। वह अहिंसा की रहा है, तो बीहड़ वनों में और पगडंडियों पर उतरेगा? सत्य की बात करता है। खोज पर तो जाना पड़ता है अकेले। वहां तो कोई साथी न होगा, यहां खयाल रखना, अहिंसा वीरों का वेश है—उनका नहीं जो कोई संगी न होगा। वहां तो शास्त्र भी छोड़ देने होंगे, शब्द भी अभी डर रहे हैं, भयभीत हो रहे हैं, घबड़ा रहे हैं। उनकी अहिंसा | छोड़ देने होंगे। वहां तो समाज से जो लिया है वह सब छोड़कर किसी काम की नहीं है। वह तो केवल लफ्फाजी है। वह तो जाना होगा। भाषा भी छोड़ देनी होगी। इसलिये महावीर ने ऊपर से थोप लिया आवरण है। वह तो अपने को छिपा लेना है, अपने संन्यासी को मुनि कहा था, कि वह भाषा का त्याग कर दे। सुरक्षा है। क्योंकि भाषा तो समाज की ही देन है। गौर से देखें तो भाषा ही महावीर कहते हैं, निःशंका पहला चरण है। और जो संसार से समाज है। जब तुम बोलते हो तभी समाज बनता है; जब तुम ही घबड़ा गये हैं, वह सत्य की यात्रा पर क्या खाक निकल नहीं बोलते तो समाज नहीं बनता। तुम अगर चुप खड़े हो तो तुम सकेंगे। जहां डरने जैसा कुछ भी न था, क्योंकि जहां खोने जैसा अकेले हो; बोले, कि जुड़े। ही कुछ न था, वहां जो डर गये, वे सत्य की यात्रा पर कैसे निकल | थोड़ी देर को सोचो! एक गांव तय कर ले कि अब वाणी का सकेंगे? इस भेद को खयाल में लो। त्याग करते हैं, पूरा गांव चुप हो जाये, तो उस गांव में सत्य की खोज के नाम पर तुम कहीं संसार से डरकर तो नहीं अकेले-अकेले लोग रह जायेंगे। उस गांव में समाज न रहेगा, बैठ गये हो। जैन मुनियों को मैं देखता हूं तो ऐसा ही प्रतीत होता | क्योंकि सेतु गिर जायेंगे। दो आदमियों के बीच जो सेतु हैं वे तो है। अधिक मौकों पर वे सत्य की खोज में नहीं गये, सिर्फ संसार शब्द हैं। अगर सारा गांव तय कर ले कि अब हम चुप होंगे तो की खोज से रुक गये हैं। संसार की खोज से रुक जाना अनिवार्य | गांव मिट जायेगा; व्यक्ति रह जायेंगे, समूह न रह जाएगा। रूप से सत्य की खोज नहीं है। हां, सत्य का खोजी संसार की | समूह तो जीता है भाषा पर। खोज से मुक्त हो जाता है, यह जरूर सही है। लेकिन संसार की महावीर ने कहा कि तुम भाषा भी छोड़ोगे तो ही जा सकोगे खोज छोड़ देनेवाला सत्य की खोज पर निकल जाता है, यह | सत्य तक। हां, जब सत्य को जान लो, तब चाहे भाषा का आवश्यक नहीं है। उपयोग करके लोगों को समझा देना। लेकिन जानते समय ऐसा समझो, एक आदमी गौरीशंकर चढ़ने जाता छोड़कर जाना होगा, मौन होना होगा, शून्य होना होगा। और जो है—गौरीशंकर चढ़ने जायेगा तो पूना छूटेगा। लेकिन पूना | भी तुम्हारे पास है उस सबको उसके लिए दांव पर लगा देना छोड़कर कोई बैठ जाये, इससे गौरीशंकर नहीं पहुंच जायेगा। होगा, जिसको न तुम जानते, न कोई आश्वासन है जिसका कि पूना छोड़कर बैठने के हजार उपाय हैं: पूना की ठीक सीमा पर पक्का है, मिलेगा। क्योंकि कोई दूसरा तुम्हें आश्वासन नहीं दे बाहर बैठा रहे; जहां पूना का कारपोरेशन का क्षेत्र शुरू होता है, | सकता। अगर मुझे कुछ मिला तो मैं लाख सिर पटकू तो भी तुम्हें बस उसकी सीमा पर बैठा रहे। लेकिन इससे कोई गौरीशंकर पर समझा नहीं सकता कि तुम्हें भी मिलेगा। कोई उपाय नहीं है। | नहीं पहंच जायेगा। हां, गौरीशंकर की यात्रा पर जो गया है वह सत्य की अनुभूति आंतरिक है। वस्तुतः नहीं है सत्य, कि तुम्हें पूना से जरूर मुक्त हो जायेगा; उसे पना छोड़ना ही पड़ेगा। / दिखा दूं हाथ में रखकर, कि यह रहा सत्य, ताकि तुम्हें भरोसा महावीर ने संसार छोड़ा, सत्य की यात्रा पर गये, इसलिये। आ जाये। तुम छूकर तो न देख सकोगे, आंख से न देख सकोगे, बड़े साहस का कदम उठाया। लेकिन जैन मुनि!...वह संसार कान से सुना न जा सकेगा। भरोसा करना होगा। उसी भरोसे को से डरकर बैठ गया है। संसार से जो डर गया वह सत्य में तो महावीर कहते हैं: निःशंका, ट्रस्ट। एक गहन श्रद्धा की जरूरत जायेगा ही कैसे? परिचित से जो डर रहा है वह अपरिचित में तो होगी; एक ऐसी श्रद्धा की, जिसमें जरा भी संदेह न हो, क्योंकि 664 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org'.