________________ द्वारा करना। इसलिए हम कपड़ों पर बड़ी जिद्द करते हैं। अगर कोई आदमी रास्ते पर पुलिसवाले के कपड़े पहनकर गालिब भोजन करने लगा तो उसने पहले उठायी मिठाई, अपने निकल पड़े तो फौरन पकड़ लेंगे उसको कि यह तुम क्या कर रहे | कोट को कहा कि ले खा, टोपी को लगाया कि ले खा! तो हो, क्योंकि इससे फर्क कम हो जाता है। तुमने कभी पुलिसवाले बहादुरशाह को कुछ लगा कि कवि पागल होते हैं, यह तो ठीक को वर्दी के बिना देखा? लज्जत ही खो जाती है, शान ही चली है; लेकिन इतने होते हैं, यह नहीं सोचा था। उसने कहा, 'क्षमा जाती है! वही आदमी जब अपनी वर्दी में खड़ा होता है, तब करें! आप यह क्या कर रहे हैं? यह कौन-सी शैली है भोजन देखो। तब एक शान आ जाती है! करने की?' गालिब ने कहा, 'मैं तो पहले भी आया था। मैं तो 'कर्नल राज' वहां बैठे हुए हैं, सिर छिपाए हुए हैं। उनको लौटा दिया गया, मैं फिर आया ही नहीं। ये तो अब वस्त्र आए संन्यासी के वेश में देखो और जब वह मेजर, कर्नल के वेश में हैं। यह भोजन इन्हीं के लिए है। इन्हीं को प्रवेश मिला है, मुझे तो होते हैं, तब देखो! तब बात ही और बदल जाती है! प्रवेश नहीं मिला। मैं तो बाहर से ही लौट गया हूं। वह तो आदमी चलता और ढंग से है जब कपड़े कर्नल के होते हैं। पहरेदार ने धक्का दे दिया। तो जिनकी वजह से मैं भी पीछे-पीछे उसके पैरों की आवाज, उसके जतों की चरमराहट, उसके कपड़ों चला आया है, क्योंकि मजबरी थी, मेरे बिना ये वस्त्र कैसे आते. की शिकन, सब बदल जाती है। आदमी का थोड़ा हमें हिसाब ये मेरे बिना आते ही नहीं और इनके बिना मैं नहीं आ सकता था, है, हमें हिसाब तो कपड़ों के हैं। | तो जिनके कारण में आ गया हूं छाया की तरह, उनको तो पहले कहते हैं गालिब को बहादुरशाह ने निमंत्रित किया था भोजन के भोजन करा दूं।' लिए। वह गरीब आदमी था, अपने साधारण कपड़ों को पहने महावीर जब नग्न खड़े हो गए तो उन्होंने तुम सबको नग्न कर चला गया। मित्रों ने कहा भी कि इन कपड़ों में तुम्हें कोई दरबार दिया। उन्होंने सबके वस्त्र उघाड़ दिए। बड़ी अनैतिकता मालूम में प्रवेश न करने देगा। पर उसने कहा कि निमंत्रण मुझे मिला है पड़ी लोगों कोः यह आदमी तो खतरनाक है! इसको कौन कि कपड़ों को?...जिद्दी! नहीं माना, गया। जब द्वारपाल को चरित्रवान कहेगा? यह कैसी मर्यादा? यह तो मर्यादा छोड़ना जाकर उसने कहा कि मुझे भीतर जाने दो, तो द्वारपाल ने धक्का | है, यह तो स्वच्छंदता है। देकर उसे हटा दिया। उसने कहा कि 'भिखमंगों के लिए इसलिए महावीर कहते हैं कि सम्यक दृष्टि तो अनिवार्यरूपेण राजमहल में निमंत्रण!... दिमाग खराब हो गया है?' उसको आचरणवाला होता है, लेकिन उसका आचरण समाज की तो भरोसा ही नहीं आया कि यह दुर्व्यवहार....! उसने खीसे से तथाकथित धारणा से मेल खाए न खाए। इसलिए वे कहते हैं, निमंत्रण-पत्र निकालकर दिखाया तो उसने झपट्टा मारकर वह भी। कि अगर न भी मेल खाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। छुड़ा लिया। उसने कहा, 'किसी का चुराया होगा! किसका सिझंति चरियभट्ठा। वह जिसको लोग सोचते हैं उठा लिया?' चरित्र-भ्रष्ट, वह भी केवल दर्शन के सहारे मुक्त हो जाता है, वह बेचारा गालिब घबड़ाया, घर वापिस लौट आया। मित्रों ने सिद्धि को उपलब्ध हो जाता है। किंतु सम्यक दर्शन से रहित कहा, 'हमने पहले कहा था, हम जानते थे। हम कपड़े ले आये सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते। हैं।' तो उन्होंने अचकन वगैरह पहना दी। ठीक-ठाक कपड़े इसलिए जो पाना है, जो खोजना है, वह दृष्टि है, वह देखने का पहना दिए, जूते नये पहना दिए। और जब यह आदमी वापस ढंग है; वह साफ-सुथरी आंख है; वह निर्मल भाव-दशा है। गया तो वही द्वारपाल झुककर नमस्कार किया कि आइये! तुम आंख पर कोई विचार न रह जाये। आंख पर कोई धारणा न रह हंसना मत द्वारपाल पर, तुम भी होते तो यही करते। फिर जब जाये। आंख पर कोई पक्षपात न रह जाये। आंख ऐसी निर्मल भोजन के लिए बैठे तो बहादुरशाह ने...तो गालिब का बड़ा हो, पारदर्शी हो कि जो है, जैसा है, वैसा दिखाई पड़ने सम्मान था उसके मन में। वह भी कवि था, बहादुरशाह भी कवि लगे-बस पर्याप्त है। उसके पीछे ज्ञान अपने से आ जाता है, था। और गालिब की कविता का तो क्या कहना। वैसे उस्ताद तो चारित्र्य अपने से आ जाता है। लेकिन यह चारित्र्य जरूरी नहीं है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrarytorg