________________ जिन सूत्र भागः1 HRITTER जैन अदभुत हैं! वे कहते हैं, यह भी कर्म-बंध है। है तो यह लेकिन वह भी कर्म-बंध है। पर इस जन्म में, तीर्थंकर की दशा भी। कितना ही पुण्य हो, लेकिन है तो यह भी बांधनेवाला है। में, कोई कर्म-बंध नहीं होता। अब तो सब सहज होता है। करुणा से बंधे हो-तो बड़ी सोने की जंजीर है, हीरे-जवाहरातों | इसको खयाल रखना। से जड़ी जंजीर है, लेकिन बंधे हो। तो आखिरी जन्म में ऐसा तुम्हारी अगर अहिंसा भी होगी तो असहज होगी, चेष्टित व्यक्ति जब ज्ञान को उपलब्ध होता है तो अपने ज्ञान को लेकर होगी। तुम अगर दया भी करोगे तो प्रयास करोगे तो ही दया चुपचाप उड़ नहीं जाता आकाश में; रुकता है जमीन पर। उसके करोगे। तुम अगर करुणा करोगे तो अपने को बहुत ज्यादा पास जंजीरें हैं कुछ। जीवन की सांसारिक जंजीरें तो सब उसने | खींचोगे तो ही कर पाओगे। अगर तुमने अपने को ज्यादा न तोड़ दी हैं, लेकिन करुणा की जंजीरें हैं उसके पास। उनके खींचा तो तुम करुणा न कर पाओगे। हां, क्रोध कर पाओगे आधार पर वह थोड़ी देर पृथ्वी पर टिकता है। उन क्षणों में वह सहज। क्रोध तुममें सहज होता है, करुणा असहज। अगर बांट पाता है, दे पाता है जो उसे मिला है। तीर्थंकर को क्रोध करना हो तो असहज होगा, करुणा सहज। तो तीर्थंकर तो कोई कर्म-बंध के कारण होता है। लेकिन सिक्का उलटा हो गया। सारे गणित के नियम विपरीत हो गये। तीर्थंकर का कोई कर्म-बंध नहीं होता। अगर तीर्थकर को क्रोध करना पड़े...कभी-कभी तीर्थकर क्रोध तीर्थंकर का अर्थ है जिसने जाना ही नहीं, जो जनाने में कुशल करते हैं। जैन तीर्थंकरों के जीवन में तो उल्लेख नहीं, क्योंकि जैन है। तीर्थंकर का अर्थ है जो स्वयं नहीं हो गया केवल, बल्कि उल्लेख नहीं कर सकते। वे सोच ही नहीं सकते कि तीर्थंकर और दसरों को भी उस दिशा में इशारे करने में कुशल है; जिसने क्रोध कर सकता है! बात भी ठीक है। तीर्थंकर से क्रोध सहज अपनी ही आंखें नहीं खोल लीं, बल्कि दूसरों की आंखों की भी नहीं होता, इसलिए उसका उल्लेख करना उचित नहीं है। लेकिन चिकित्सा करने में जो कुशल है; जो अपनी आंखों के सहारे, | और परंपराएं हैं। वहां भी तीर्थंकर होते हैं। अपनी दृष्टि के सहारे तुम्हें भी दर्शन करा देता है। __ जैसे जीसस के जीवन में उल्लेख है कि वे चर्च में, मंदिर में तो ज्ञानी तो केवल ज्ञानी है-उसने पा लिया और गया। गये-यहूदियों का जो सबसे प्राचीन मंदिर था जेरुसलम तीर्थंकर ऐसा ज्ञानी है जो रुकता है थोड़ी देर। उसकी नाव इसके | का-और वहां उन्होंने देखा कि ब्याजखोर मंदिर के भीतर | पहले कि छुटे अनंत के तट की ओर, इस किनारे पर वह थोड़ी दुकानें लगाकर बैठ गये हैं। तो उन्होंने कोड़ा उठा लिया और वे देर रुकता है। और इस किनारे पर जो लोग अभी हैं और जिन्हें आग-बबूला हो गये और उनकी आंखों से आग बरसने लगी। | दूसरे किनारे का कोई पता भी नहीं, जिन्होंने स्वप्न में भी दूसरे और अकेले आदमी ने सैकड़ों ब्याजखोरों को मंदिर के बाहर किनारे को नहीं देखा, जिनकी कल्पना में भी दूसरे किनारे की उठाकर फेंक दिया। वह इतने घबड़ा गए। इतना जाज्वल्यमान छाया नहीं पड़ी है-ऐसे लोगों को भी दूसरे किनारे की अभीप्सा रूप था उनका! ईसाइयों को बड़ी कठिनाई रही है यह समझाने में से भर देता है। इसके पहले कि खुद की नाव छोड़े और न मालूम कि ईसा इतने क्रोधित कैसे हो गये। करुणा का मसीहा इतना कितने लोगों को तैयार कर देता है कि वे भी उत्सुक हो जायें, | क्रोधित कैसे हो गया! आतुर हो जायें, प्यासे हो जायें। लेकिन अगर तीर्थंकर चाहे तो चेष्टा से क्रोध कर सकता है। तीर्थंकर का अर्थ है: जान लिया और जनाया भी। सिर्फ लेकिन वह क्रोध भी होगा किसी करुणा की ही सेवा में। इस जानकर ही जो चला गया, वह अकेला चला जाता है। उसके कीमिया को समझना। यह करुणा ही थी जीसस की कि यह पीछे कोई परंपरा नहीं बनती जानेवालों की। जो सिर्फ जानकर | परमात्मा का मंदिर विकृत न हो जाये; यहां की प्रार्थना बाजारून चला गया, उसके पीछे कोई धर्म निर्मित नहीं होता; वह चुपचाप हो जाये; यह पूजागृह बाजार की गंदगी से न भर जाये। यह तिरोहित हो जाता है। उसकी कोई रेखा नहीं छूट जाती। लेकिन करुणा ही थी। इस करुणा के कारण ही वे क्रोधित हो गए। जो दूसरों को जनाने की अथक चेष्टा करता है, वह अथक चेष्टा | | लेकिन यह क्रोध चेष्टित था, अभिनय था; जैसे कोई अभिनेता उसके पिछले जन्मों में साधे गये अभ्यास का परिणाम है। क्रोधित हो जाता है। जैसे राम रामलीला में अभिनय करते हए 608 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org