________________ SURE जिन सूत्र भाग : 1 TREERHETHEREITER करुणा उतनी ही है, जब कि तुम हो। तुम्हारा होना न होना कुछ नहीं; मेरे पास है, इसलिए; मैं बोझ से दबा हूं, इसलिए। फर्क नहीं लाता। तीर्थंकर की करुणा तुम्हारे और तीर्थंकर के जीसस की कहानी बड़ी महत्वपूर्ण है। बीच संबंध नहीं है—तीर्थंकर की दशा है; उसकी अवस्था है; महावीर तुम्हें देते हैं तुम्हारे दुख के कारण नहीं। मिला है उन्हें, उसका आनंदभाव है। वह तुम पर इसलिए करुणा नहीं कर रहा | खूब मिला है! और उसको न बांटें तो वह बोझिल हो जाता है। है कि तुम दुखी हो। उससे तुम्हारी तरफ करुणा बहती है क्योंकि | उसे बांटना जरूरी है। अगर तुम न भी होओगे तो भी बांटेंगे। वह आनंदित है। इस भेद को बहुत ठीक से समझ लेना। तुम्हारी | अगर तुम सुखी होओगे तो भी बांटेंगे। जरूरत है, इसलिए नहीं देता है वह; उसके पास जरूरत से | तो तुम्हारे दुख से तुम तीर्थंकर की करुणा को मत जोड़ना। ज्यादा है, इसलिए देता है। तुमसे उसका कोई संबंध नहीं है। तीर्थंकर की करुणा का संबंध जीसस के जीवन में कहानी है, जो उन्होंने बहुत बार कही। | | उसके अंतर-आनंद से है, सच्चिदानंद से है। वह अपनी आत्मा एक बगीचे के मालिक ने सुबह-सुबह मजदूर बुलाए। अंगूरों | में रमा है और उसने इतना पा लिया है। और जो पाया है वह कुछ का बगीचा था और जल्दी ही फसल को काट लेना था। मौसम | ऐसा है कि बांटो तो बढ़ता है, न बांटो तो घट जाता है। इसलिए बदला जाता था। सुबह जो मजदूर आये उन्होंने दोपहर तक काम | तुम पर करुणा करके तीर्थंकर कुछ कर रहे हैं, ऐसा नहीं। किया। मालिक आया, उसने देखा। उसने कहा, इतने मजदूरों | आनंद-भाव में बांटते हैं—बांटने से बढ़ता है। जितना बांटते से शाम तक काम निपटेगा नहीं। तो भेजा अपने मुनीम को कि हैं, उलीचते हैं, उतना बढ़ता चला जाता है; उतने नये स्रोत और मजदूर ले आओ। तो भर-दुपहरी कुछ और मजदूर लाए खुलते चले जाते हैं। तो जब रोज-रोज नया-नया आनंद बरस गये। फिर आया मालिक। सांझ ढलने को थी। उसने कहा, | रहा हो, बासे को कौन रखेगा! तुम सांझ भोजन कर लेते हो, इनसे भी काम न हो पायेगा; कुछ और बुला लाओ। तो सूरज | फिर बांट देते हो। लेकिन गरीब बासी रोटी को भी रख लेता है: ढलते-ढलते काम बंद होते-होते कुछ मजदूर आए। और जब | कल काम पड़ेगी। रात्रि में उसने पैसे बांटे तो सबको बराबर दे दिये-जो सुबह | तुम बांटने से डरते हो, क्योंकि कल का पक्का नहीं है। और आये थे उनको भी, जो दोपहर आये थे उनको भी, जो सांझ आये | आज का अगर बांट दिया तो कल मिलेगा या नहीं! लेकिन थे उनको भी। जिन्होंने दिनभर काम किया उनको भी, और | तीर्थंकर उस दशा में हैं जहां प्रतिपल अनंत बरस रहा है। तो जो जिन्होंने कुछ भी काम न किया था उनको भी। तो जो सुबह आये | इस क्षण बरसा है, उसे बांट ही देना है; क्योंकि दूसरे क्षण के थे वे निश्चित नाराज हो गये। और उन्होंने कहा, 'यह अन्याय लिए जगह खाली करनी है। अगर न बांटा तो बासा पड़ा रह है। हम सुबह से आये हैं, दिनभर पसीना बहाया है। हमें भी | जायेगा और बासे के कारण नये के आने में बाधा पड़ेगी। और उतना, और इन्हें भी उतना जो अभी-अभी आये और जिन्होंने अगर बासा बहुत इकट्ठा हो गया, उसकी राशियां लग गयीं तो कुछ भी नहीं किया, जिन्हें करने का मौका ही न मिला, क्योंकि नये के जन्म की कोई संभावना न रह जायेगी। सूरज ढल गया?' तो न तो तीर्थकर का कृत्य कृत्य है, और न करुणाजन्य तो उस मालिक ने कहा, तुम्हें कम तो नहीं दिया है? उन्होंने | है-करुणापूर्ण है। इसलिए कोई बंध नहीं-न पाप का न पुण्य कहा, 'नहीं, कम नहीं दिया है। जितनी मजदूरी मिलती, उससे का। तीर्थंकर से बहुत कुछ होता है, लेकिन तीर्थंकर कुछ करता ज्यादा ही दिया है। लेकिन अन्याय हो रहा है। इन्होंने तो कछ भी नहीं।...सहजस्फर्त: जैसे पक्षी गीत गाते हैं। नहीं किया। तो उस मालिक ने कहा कि तुम अपनी फिक्र करो। मिर्जा गालिब से कोई पूछा कि लोग आपकी कविताओं की तुम्हें जितना मिलना था उससे ज्यादा मिल गया, तुम प्रसन्न नहीं बड़ी प्रशंसा करते हैं, लेकिन मेरी तो कछ समझ में नहीं आतीं। हो। तुम इनसे तुलना मत करो। इन्हें मैं काम के कारण नहीं और जो प्रशंसा करते हैं, मुझे शक है कि उनकी भी समझ में देता; मेरे पास बहुत है, इसलिए देता हूं। मैं सबको बराबर दे आती हैं। क्योंकि जब भी मैंने उनसे पूछा तो वे समझा न पाये, रहा हूं। मेरे पास जरूरत से ज्यादा है। तुम्हारे काम के कारण आप कुछ कहें। 604 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org