________________ K MI जिन सूत्र भागः / Sachin SRIMARCH Poes beins HAL मरुस्थल में भटकते-भटकते खो जाये और उसे सागर न मिले। निकाल लेते-कुछ भी करने का, तीर्थ स्नान कर आते, मंदिर में हृदय से पूछो! हृदय और प्रेम का समझौता है। और हृदय कह | पूजा कर देते, प्रार्थना करके समझा-बुझा लेते; पाप हो जाता, रहा है...। पश्चात्ताप कर लेते और फिर वह करुणावान है, रहीम है, 'लेकिन मेरा अहंकार मुझे प्रेम में पूरी तरह डूबने नहीं देता। रहमान है; वह क्षमा कर ही देता; उसने तो बड़े-बड़े पापियों को मेरा हृदय नारद के साथ है और मेरी बुद्धि महावीर के साथ।' | क्षमा कर दिया। तो तुम चुन लो! अगर तुम्हें लगता है कि हृदय गलत कह रहा कहते हैं, एक पापी ने मरते वक्त भूल से अपने लड़के को है तो तुम बुद्धि के साथ कुछ दिन चल लो, दौड़ लो। सौ में से बुलाया : नारायण, नारायण! लड़के का नाम नारायण था और कभी कोई एकाध पहुंच पाता है। कोई महावीर! बहुत दुर्गम है। ऊपर के नारायण ने समझा कि मुझे पुकार रहा है। क्षमा कर क्योंकि व्यर्थ की उलझन अस्मिता की खड़ी हो जाती है। कोई दिया। स्वर्ग में उठा लिया। बैकुंठ में वास कर रहा है वह पापी परमात्मा नहीं, जहां सिर झुकाया जा सके, तो बिना किसी अब। तो जो इतनी सरलता से फुसला लिया जाता है; रिश्वत परमात्मा के सामने सिर झुकाना आ जाना बहुत दुर्लभ है। भी जिसकी इतनी सस्ती है; बुलाया भी नहीं था जिसे, किसी महावीर को घटा; बिना किसी परमात्मा के सिर झुका दिया; और को ही बुलाया था, लेकिन नाममात्र का संयोग मिल गया, बिना किसी वेदी के आहुति चढ़ा दी। 'नारायण', और जो भूल में पड़ गया; जो ऐसा कोई नहीं है परमात्मा, इस कारण साधारणतः तो 'मैं' मजबूत खुशामद-लोलुप है—ऐसा परमात्मा हो तो फिर कुछ भी करने होगा। तो इसकी बहुत कम संभावना है कि तुम महावीर हो | की छूट है। सको; इसकी संभावना ज्यादा है कि तुम नीत्से हो जाओ। नीत्से अगर महावीर से पूछो तो महावीर यह कहेंगे, अगर परमात्मा का भी तर्क वही है। वह कहता है, कोई परमात्मा नहीं। लेकिन है तो फिर मनुष्य स्वच्छंद है। फिर जो भी करना हो करो; जैसे ही उसने कहा कोई परमात्मा नहीं, उसने तत्क्षण कहा जब क्योंकि आखिर में तो वह है, उसके चरण पर गिड़गिड़ा लेना, रो परमात्मा नहीं है तो अब मनुष्य स्वतंत्र है कुछ भी करने को। लेना, माफी मांग लेना। फल क्या हुआ? फल हुआ नीत्से का पागल हो जाना। वह और वह करुणावान है, वह क्षमा कर देगा। अहंकार मजबूत होता चला गया। कहीं कोई वेदी न मिली जहां तो जो निष्कर्ष नीत्से ने लिया, वही निष्कर्ष महावीर ने चढ़ा देता। वेदी को इनकार कर दिया। इनकार करने का कारण लिया लेकिन बिलकुल उलटी तरफ से। अगर परमात्मा है तो ही यही बताया कि 'अगर परमात्मा है तो मैं नीचा हो आदमी स्वच्छंद हो जायेगा। तो महावीर ने कहा, परमात्मा तो गया-और मैं नीचे कैसे हो सकता हूं! मेरे से ऊपर कोई भी कोई भी नहीं है। इसलिए प्रार्थना का उपाय नहीं है। अपने को नहीं हो सकता।' इसलिए परमात्मा को इनकार किया। नीत्से | बनाना है, निर्मित करना है, छांटना है, काटना है, निखारना है, पागल हुआ। सब अपना ही है। खद की जिम्मेवारी चरम है। यह उत्तरदायित्व सौ में निन्यानबे मौके ये हैं कि तुम पागल हो जाओगे। महावीर | आखिरी है। इसको तुम किसी और पर न टाल सकोगे। इसलिए तो बड़े कुशल व्यक्ति हैं। चुना तो ठीक वही मार्ग जो नीत्से का | तुम आखिर में यह न कह सकोगे कि मैं क्या करूं, हो गया। है; लेकिन परमात्मा नहीं है, इससे यह निष्कर्ष न लिया कि | भोगना पड़ेगा। स्वच्छंदता का कोई उपाय नहीं मनुष्य अब स्वच्छंद है। इससे उलटा ही निष्कर्ष लिया। महावीर | तो महावीर ने तो परमात्मा के न होने से उत्तरदायित्व लिया। ने कहा, 'चूंकि परमात्मा नहीं है, इसलिए अब कोई स्वच्छंदता | नीत्से ने परमात्मा के न होने से स्वच्छंदता ली। महावीर तो न चलेगी; सारा उत्तरदायित्व मेरा है।' समझे फर्क? नीत्से ने | विमुक्त हो गये, नीत्से विक्षिप्त हो गया। दोनों के तर्क का प्रारंभ कहा, कोई परमात्मा नहीं, तो अब करो जो करना है। महावीर ने | बिलकुल एक जैसा था, लेकिन अंत बड़ा भिन्न हुआ। कहां कहा, अब तो कुछ करने का उपाय ही न रहा; अब तो जो भी महावीर परम सुगंध को उपलब्ध हुए और कहां नीत्से पागलखाने किया, जिम्मेवारी मेरी है। परमात्मा होता तो कुछ रास्ता भी | में सड़ा और मरा! 612 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org