SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सत्र भागः1 करना सोते हुए। शायद इसीलिए लोग अकेले में सोना पसंद | हर समस्या में छिपा हुआ समाधान है और हर उलझन में छिपी करते हैं, भीड़-भाड़ में सोना पसंद नहीं करते, हर कहीं सो जाना | हुई सुलझन है और हर प्रश्न अपने उत्तर को लिए हुए है। जरा पसंद नहीं करते; क्योंकि सोने की अवस्था में चित्त से वही प्रगट खोज की जरूरत है। हारे लिए सहज स्वाभाविक है। नियंत्रण तम ऐसा कोई प्रश्न नहीं खोज सकते जिसका उत्तर न करनेवाला तो रह नहीं जाता, वह तो सो गया; नियंता तो सो | हो...देर-अबेर लगे। तुम ऐसी कोई उलझन नहीं बना सकते गया, कर्ता तो सो गया। | जिसका सुलझाव न हो। तुम न करना चाहो सुलझाव तो बात तो अगर तुम क्रोधी आदमी हो तो तुम्हारा रात में चेहरा अलग। तब उलझन की समस्या नहीं है तुम्हारी समस्या है; बिलकुल क्रोध से भरा हुआ होगा। अगर तुम कामुक आदमी हो तुम करना ही नहीं चाहते। अगर तुम करना चाहो तो कोई बाधा तो रात तुम्हारा चेहरा काम से भरा होगा; तुम्हारे चेहरे पर काम | नहीं है। रिसता होगा। तुम जैसे हो, रात का चेहरा तुम्हारा, तुम्हारे बाबत अब यह उलझन खड़ी की हुई है। ज्यादा असली खबर देगा। दिन में तो तुम थोड़ा झूठ कर लेते हो, ‘पहली बार किसी के प्रेम में पड़ा हूं, लेकिन मेरा अहंकार मुझे रात में तुम न कर पाओगे। प्रेम में पूरी तरह डूबने नहीं देता।' इसलिए तथाकथित साधु-संन्यासी सोने तक से डरते हैं। अगर यह समझ में आ रहा है तो चुन लो। या तो अहंकार को घबड़ाहट रहती है। क्योंकि सोए कि उन्होंने जो-जो साधा है दिन चुन लो, तब प्रेम पागलपन है। तब छोड़ो बकवास! नारद का में, उस सब पर कब्जा गया। दिनभर तो साधा ब्रह्मचर्य, लेकिन | दिमाग फिर गया होगा! और अगर प्रेम को चुनना है, तो फिर रात कामवासना का स्वप्न मन को पकड़ लेता है। अब क्या करें, अहंकार को गिराओ। दो नावों पर सवार मत हो जाओ, अन्यथा स्वप्न में कैसे साधे! स्वप्न में तो होश ही नहीं है, साधना कैसे हो| उलझन होगी। और दोनों नावें बड़ी अलग-अलग हैं। महावीर पायेगा? ऐसी चित्त की दशा है। और नारद दोनों के कंधों पर हाथ मत रख लेना, अन्यथा तुम साधारणतः जब तक हम मुछित हैं, बेहोश हैं, तब तक हमसे | त्रिशंकु हो जाओगे। तब तुम बड़ी उलझन में पड़ोगे। लेकिन गलत तो सहज होता है और सही चेष्टा से होता है। उलझन के लिए न तो महावीर जिम्मेवार होंगे और न नारद जब चित्त की दशा जागरूक होती है, प्रबुद्ध होती है, संबोधि | जिम्मेवार होंगे जिम्मेवार तम होओगे जिसने दोनों के कंधों पर को उपलब्ध होती है, तो जो ठीक है वह सहज होता है; जो गलत | हाथ रख लिये। किसने तुमसे कहा था? है, अगर वह करना पड़े किसी कारण से तो वह अभिनय से नारद से पूछते तो नारद तो कहते हैं, महावीर गलत हैं। ज्यादा नहीं होता। महावीर से पूछो तो महावीर कहते हैं, नारद गलत हैं। इसलिए जुम्मा उन पर न डाल सकोगे तुम। तुम उलझन अगर पैदा करना दूसरा प्रश्न : पहली बार मैं किसी के प्रेम में पड़ा हूं, लेकिन चाहो तो फिर बात अलग।। मेरा अहंकार मुझे प्रेम में पूरी तरह डूबने नहीं देता। मेरा हृदय अब एक आदमी अगर दो नावों पर सवार हो और पूछे कि मैं तो नारद के साथ है, लेकिन बुद्धि महावीर के साथ। भीतर से | क्या करूं, तो हम क्या कहेंगे? हम कहेंगे, साफ है बातः एक तो प्रेम करना चाहता हूं लेकिन बाहर कुछ और ही प्रकाशित नाव पर सवार हो जाओ। निश्चित ही एक नाव पर सवार होने होता है। फलस्वरूप बड़ी खींचातानी चलती है। क्या कोई के लिए दूसरी नाव छोड़नी पड़ेगी। इसलिए दोनों के लाभ मन में आशा है इस उलझन से बाहर हो जाने की? मत रखना। जिंदगी चुनाव है—प्रतिपल चुनाव और निर्णय है। और जब जहां-जहां उलझन है वहां-वहां सुलझन का उपाय है। उलझन भी तुम एक बात चुनते हो तो कुछ छोड़ना पड़ता है। सच तो यह होती ही नहीं, अगर सुलझने की आशा न हो। उलझन खड़ी ही है एक बात चुनने के लिए हजार बातें छोड़नी पड़ती हैं। वहां होती है जहां सुलझने का द्वार पास ही है। तुम यहां आए मुझे सुनने, इस घंटे के हजार उपयोग हो सकते 610 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340128
Book TitleJinsutra Lecture 28 Jivan ka Rut Bhav Prem Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size43 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy