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________________ जीवन की भव्यता : अभी और यहीं नहीं; जहां सब मिला हुआ है। ऐसी परितृप्ति, ऐसा परितोष! वह जो वासना है, उसको भी बड़े फूल खिलाना आता है। तुम तो फिर भी तुम्हारे जीवन से धर्म होता है, लेकिन अब धर्म | अगर भागे संसार से तो वह धर्म के फूल खिलाने लगती है। तुम खेल की तरह है। जैसे कोई संगीतज्ञ अपनी वीणा पर धुन उठाता अगर भागे विचार से तो वह ध्यान के फूल खिलाने लगती है। है-नहीं कि कुछ पाना है, बल्कि इसलिए कि इतना मिला है, हविश को आ गया है गुल खिलाना इसे गुनगुनाए, इसे गाए, इसका स्वाद लेता है, कि कोई नर्तक जरा ए जिंदगी! दामन बचाना। / है नहीं कि कोई देखे; कोई देख ले, यह उसका जरा सावधान रहना। तुम्हारी तष्णा बड़े-बड़े रूप रख लेती सौभाग्य है, न देखे उसका दुर्भाग्य है। है। तृष्णा बड़ी बहुरूपिया है। तुम जैसा रूप चाहते हो वह वैसा | वानगाग के चित्रों को देखने एक आदमी आया। उसे कुछ ही रखकर नाचने लगती है। वह कहती है, चलो यही सही। समझ में न आया कि इन चित्रों में क्या है। उसने इधर-उधर देखा लेकिन जब तक तुम उसको ठीक से पहचान न लोगे, उसके सब और फिर वह जाने लगा तो उसने वानगाग को कहा कि मेरी कुछ रूपों में, जब तुम एक बुनियादी बात न पहचान लोगे कि तृष्णा समझ में नहीं आता। मैं तो यह भी तय नहीं कर सकता कि चित्र | साधन और साध्य की दूरी है...फिर जहां भी साधन और साध्य सीधे लटके हैं कि उलटे लटके हैं। इनमें है क्या? की दूरी हो, समझना कि तृष्णा ने रूप धरा। सावधान हो जाना! वानगाग की आंख में, कहते हैं आंसू आ गये। उस आदमी ने जरा ए जिंदगी! दामन बचाना! कहा कि क्या मैंने आपको दुख पहुंचाया? वानगाग ने कहा, ...तब तुम सावधान हो जाना कि फिर आया भविष्य; कहीं से | नहीं! लेकिन मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूं: काश, तुम्हारे तृष्णा ने द्वार खटखटाया। फिर तुमने कहा, कल-तृष्णा आ पास मेरे जैसी देखनेवाली आंखें होती! तुम बिलकुल अंधे हो, गयी! फिर तुमने कहा, ऐसा हो जाये, ऐसा होता, और उसका इसलिए आंख में आंसू आ गये, और कोई कारण नहीं। तुम आयोजन करने लगे-बस तृष्णा आ गयी! जिस घड़ी तुम जो व्यक्ति धार्मिक है, उसके पास एक आंख है, जो अधार्मिक बैठे हो या चल रहे हो या उठे हो, खड़े हो, और उस घड़ी में कोई के पास नहीं है। उसके पास एक तीसरा नेत्र है। उसके पास तृष्णा नहीं है-तुम बैठे हो तो बस बैठे हो आनंदित; खड़े हो तो दिव्य चक्षु है। और वह दिव्य चक्षु प्रत्येक चीज को भव्य कर खड़े हो आनंदित; चल रहे हो तो चल रहे आनंदित-जीवन के देता है, सुंदर कर देता है। वह जहां भी आंख डालता है, वहीं ये छोटे-छोटे कर्म भव्य हो जाते हैं। मिट्टी सोना हो जाती है। वह जहां हाथ रखता है. वहीं मिट्टी सोने झेन फकीर कहते हैं, जिसने साधारण में असाधारण को खोज में बदल जाती है। वह जिस तरफ उठता है, बैठता है, उसी तरफ लिया, उसी ने खोजा। जो असाधारण के चक्कर में लगा है, वह कल्पवृक्ष निर्मित होने लगता है। | तो साधारण ही रह जायेगा। क्योंकि असाधारण का चक्कर यह तुम्हारे बस में है कि तुम भव्य हो जाओ। लेकिन भव्य | तृष्णा का चक्कर है। होने का एक ही उपाय है कि भविष्य गिर जाए। भविष्य से ले लो एक झेन फकीर से किसी ने पूछा कि जब तुम ज्ञान को उपलब्ध वापस, तुमने जो भव्यता उसे दी है। और उस भविष्य से छीनी नहीं हुए थे, तब तुम क्या करते थे? उसने कहा, लकड़ी काटता गयी भव्यता को अपने हृदय में आरोपित करो। था, कुएं से पानी भरकर लाता था। और उसने पूछा, अब जब 'अभव्य जीव धर्म को भोग का निमित्त समझकर करता है कि तुम ज्ञान को उपलब्ध हो गये हो, अब क्या करते हो? उसने कर्मक्षय का कारण समझकर नहीं।' / कहा, अब भी लकड़ी काटता हूं, अब भी कुएं से पानी भरकर वह तो धर्म से भी कर्म का जाल ही फैलाता है, कर्म का क्षय लाता हूं। तो उसने कहा, फिर फर्क क्या है? फर्क बहुत बड़ा नहीं होता। वह तो धर्म के नाम पर ही इस संसार की ही वृत्तियों | है। पहले भी कुएं से पानी भरकर लाता था, लेकिन कुछ पाने की को फिर-फिर आरोपित कर लेता है। आकांक्षा थी उसके द्वारा; पहले भी लकड़ी काटता था, लेकिन हविश को आ गया है गुल खिलाना वासना कहीं भविष्य में थी। जरा ए जिंदगी! दामन बचाना। ...अब भी लकड़ी काटता है, अब भी पानी भरकर लाता 499 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340123
Book TitleJinsutra Lecture 23 Jivan ki Bhavyata Abhi aur Yahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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