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________________ HIT जैनों का एक पंथ है-तेरापंथ-आचार्य तुलसी का पंथ। वे योग्य न था। क्योंकि उनका कुल जोर पकड़ने पर है; जो भी तो यहां तक कहते हैं कि अगर राह के किनारे कोई मर रहा हो तो मिले पकड़ लो, सम्हालकर रख लो! कूड़ा-कर्कट हो तो भी रख तुम चुपचाप अपने राह से चले जाना। क्योंकि क्या पता, तुम लो, कौन जाने कल कुछ काम आ जाये! छोड़ने की उनकी उस प्यासे मरते आदमी को पानी पिला दो, और वह कल हत्यारा हिम्मत नहीं है। फिर इनके विपरीत दूसरे लोग हैं, जिनको हम हो जाये, तो तुमने हत्या में भाग लिया। ठीक है, वह मर जाता त्यागी कहते हैं। वे भोगियों जैसे ही हैं, सिर्फ शीर्षासन कर रहे अगर तुम पानी न पिलाते, मर जाता तो हत्या न कर पाता। तुमने हैं, उलटे खड़े हो गये हैं। वे कहते हैं, सब छोड़ दो। सर्वस्व पानी पिलाया तो वह जी गया। जी गया, उसने कल जाकर हत्या त्याग! पहला आदमी भूल कर रहा थाः सब पकड़ लो; यह की, तो तुम यह मत समझना कि तुम बच गये। तुमने ही तो हाथ दूसरा आदमी कहता है: सब छोड़ दो। मैं तुमसे कहता हूं: दिया। इसलिए तुम अपने रास्ते पर चुपचाप चले जाना। जीवन में कुछ छोड़ने योग्य है, वह अपने से छूट जाता है; कुछ अब यह लगेगा विराग, त्याग! और ऐसी कठोर अवस्था में पकड़ने योग्य है, वह अपने से बच जाता है। और ये दोनों आदमी अपने भीतर बंद हो जाता है खोल के भीतर। इसकी | अतियां हैं। और दोनों अतियां खतरनाक हैं। पहचान ही मुश्किल हो जाती है कि यह कौन है, क्योंकि दर्पण प्रेम के नाम से कुछ चल रहा है, जो छूटना चाहिए लेकिन वह तोड़ देता है। प्रेम के अनुभव से ही छूटेगा। प्रेम की पीड़ा से गुजरोगे, समझोगे संबंधों से जो डरता है, वह दर्पण से डर रहा है। और प्रेम से कहां-कहां कांटे हैं, तो उनको छोड़ दोगे। और प्रेम में कुछ है जो बड़ा स्वच्छ कोई दर्पण नहीं है। जितने तुम्हारे जीवन में प्रेम के | | बचाने योग्य है; क्योंकि प्रेम में परमात्मा की झलक है। कहीं पूरा संबंध होंगे, उतनी ही तुम्हारी सचाई जगह-जगह प्रगट प्रेम मत छोड़ बैठना, नहीं तो तुमने टब के पानी के साथ बच्चे को होगी-उठते, बैठते, चलते। मैं तुमसे कहता हूं, अपनी सचाई भी फेंक दिया। तुमने कूड़ा-कर्कट के साथ सोना भी फेंक दिया। को जानना जरूरी है, तो ही अपनी आत्मा को रूपांतरित किया तुमने असार के साथ सार भी फेंक दिया। यह तो कुछ समझदारी जा सकता है। न हुई। यह तो कुछ विवेक न हुआ। इसलिए घबड़ाओ मत। और प्रेम को समस्या मत बनाओ। दो तरह के अविवेकी हैं-भोगी और त्यागी। भोगी का इतना डर क्या है? इतनी घबड़ाहट क्या है? अनुभव से उतरो, अविवेक है कि वह कहता है, कि जो भी है पकड़ लो, असार को गुजरो। भी पकड़ लो। वह बच्चे को तो बचाता ही है, गंदे पानी को भी जीवन जैसा है, अगर हम उसे वैसा का वैसा जीने को राजी हो बचा लेता है, उसको भी सम्हालकर रख लेता है। फिर त्यागी जायें और जीवन जो शिक्षाएं देता है उन शिक्षाओं को सीखने को | का अविवेक है। वह गंदे पानी को तो फेंकता ही है, बच्चे को भी तत्पर रहें, तो इस जीवन में कुछ भी छोड़ने जैसा नहीं है। जो साथ फेंक देता है। यह दोनों असंयम हैं। छोड़ने जैसा है, छूट जायेगा; जो बचने जैसा है, बच जायेगा। न | मेरे देखे, संयम तो ऐसी चित्त की दशा है, ऐसी जागरूक दशा, तुम्हें छोड़ना पड़ेगा, न तुम्हें बचाना पड़ेगा। जिसमें जो बचने योग्य है बचना चाहिए, बचता है; जो न बचने इसलिए मैं कहता हूं, न यहां कुछ छोड़ने योग्य है, न पकड़ने योग्य है, छोड़ने योग्य है, छूटता है। इसको ही हमने योग्य। मेरा मतलब समझ लेना। मेरा मतलब यह है कि यहां तो परमहंस-दशा कहा है। हंस की भांति, कि दूध और पानी को तुम गुजर जाओ जीवन की गहनता से जो छूटने योग्य है छूट | अलग-अलग कर ले। जायेगा; जो पकड़ने योग्य है बच जायेगा; तुम्हें न कुछ छोड़ना मैं तुमसे कहता हूं, यहां पानी बहुत है, यहां दूध भी बहुत है। है, तुम्हें न कुछ पकड़ना है। तुम इस राह से गुजर जाओ।। इस संसार में पदार्थ भी है, परमात्मा भी है। यहां रोग भी हैं और लेकिन राह से भागना मत, भगोड़े मत बनना। स्वास्थ्य भी है। यहां समस्याएं भी हैं और समाधान भी हैं। तुम दो तरह के लोग हैं। एक हैं: पकड़नेवाले, जिनको हम भोगी ये दो भूलों से बचना। सब पकड़ने में गलत भी बच रहता है, कहते हैं। दीवाने हैं। वे उसको भी पकड़ लेते हैं, जो पकड़ने सब छोड़ने में सही भी छूट जाता है। हंसा तो मोती चुगे! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340122
Book TitleJinsutra Lecture 22 Parmatma ke Mandir ka Dwar Prem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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