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________________ जन सूत्र भागः 11 किसी और के लिए होंगी। कोई महावीर उस रास्ते से चलकर | आंखें उधार नहीं मिलतीं और न दर्शन उधार मिलता है, मेरी पहुंचेगा। कुछ प्रयोजन नहीं तुम्हें उनसे। आंख से मैं देख सकता हूं। मेरी आंख से तुम न देख सकोगे। तुम्हारा हृदय तुम्हें प्रतिपल बताता है कि कौन-सी भूमि तुम्हारे मेरे लिए मैं जी सकता हूं, मेरे लिए तुम न जी सकोगे। और मेरे फूल को खिलायेगी। लिए मैं ही मर सकता हूं, तुम न मर सकोगे। फिर हर वृक्ष के लिए अलग भूमि होती है। कोई वृक्ष रेत में ही एक की जगह दूसरे के खड़े होने का कोई भी उपाय नहीं है। खड़ा होता है। कोई वृक्ष कंकड़-पत्थर चाहता है। कोई वृक्ष मगर वहीं हम धोखा देते हैं। काली भूमि चाहता है कि जरा-भी कंकड़-पत्थर न हों। जो एक महावीर ने कहा है तो ठीक कहा होगा। ठीक ही कहा है। के लिए अमृत है, वह दूसरे के लिए जहर हो जाता है। लेकिन तुम्हारे लिए कहा है, ऐसा महावीर को तुम्हारे हिसाब से इसलिए सदा ध्यान रखनाः कोई वक्तव्य सत्य के संबंध में बोलने का कोई कारण भी न था; तुम महावीर के सामने भी न सार्वभौम नहीं है-व्यक्ति-सापेक्ष है। थे। महावीर को तुम्हारा कोई पता भी नहीं है। महावीर ने तो वैराग्य की बात किसी को खिलाती होगी। असली सवाल अपना सत्य कहा है। इसे खयाल रखना। खिल जाना है। किसी को मरुस्थल की रेत में ही खिलने का यहां जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह जरूरी नहीं है कि तुम्हारा सत्य सौभाग्य होता होगा। कैक्टस मरुस्थल में ही खिलते हैं। उनका हो। वह मेरा सत्य है, इतना जरूरी है। ऐसा मैंने जाना। ऐसा भी अपना सौंदर्य है। गुलाब वहां न खिलेंगे। गुलाब का अपना तुम भी जानोगे, इसकी कोई अनिवार्यता नहीं है। जान भी सकते सौंदर्य है। हो, न भी जानो! तो अपने हृदय से कभी भी जबर्दस्ती मत करना। अगर | मुझसे मेल खा जाओ, तुम्हारा व्यक्तित्व मुझसे मेल खाता हो, व्यक्ति अपने हृदय की मानकर चलता रहे, और हृदय के तो शायद जो मेरा सत्य है वह तुम्हारा भी अनुभव बन जाये। अतिरिक्त, हृदय के विपरीत किसी की न माने, तो सत्य से तुम लेकिन अगर व्यक्तित्व मेल न खाता हो, तो मेरा सत्य तुम्हारे भटक न सकोगे, पहुंच ही जाओगे। ऊपर-ऊपर रहेगा, भीतर-भीतर तो तुम्हारा ही सत्य रहेगा।। जहां आनंद न होगा और धोखा खाया, वहां धोखा कितनी देर सभी दर्शन आत्म-कथाएं हैं, 'आटो-बायोग्राफिकल' हैं। वे चलेगा? प्यासे आदमी को कितनी देर झूठे पानी से समझाओगे, व्यक्ति के संबंध में हैं। बुझाओगे? कितनी देर सांत्वना दोगे? जल्दी ही उसे समझ में | जब महावीर कुछ कहते हैं, तो वह महावीर के संबंध में आ जायेगाः यहां कोई जलधार नहीं है। हां, लेकिन यह हो | सूचनाएं हैं; जब बुद्ध कुछ कहते हैं तो बुद्ध के संबंध में। जब सकता है, उसे तुम इस झूठी जलधार के पास ही न पहुंचने दो, तो मीरा नाचती है और नाच से कुछ कहती है, तो अपने संबंध में कभी उसके अनभव में ही न आ सके कि मगमरीचिका थी. वहां कह रही है। कुछ था नहीं। तो शायद उसके मन में सपना अपने ताने-बाने | सत्य के संबंध में जिनती उदघोषणाएं हैं, वह उन व्यक्तियों की बुनता रहे ! शायद मन कहता रहे, वहां सुख था! वहां सुख था! | उदघोषणाएं हैं जिन्होंने सत्य को जाना। उनके माध्यम से सत्य ऐसा ही मैं तुम्हारे तथाकथित साधु-संन्यासियों में देखता हूं। आया। सत्य ने एक रूप लिया। जरूरी नहीं है वही रूप तुम्हारे संसार में सुख नहीं है, ऐसा उनका अनुभव नहीं है। ऐसा किसी लिए ठीक हो। तुम कैसे समझोगे? अनुभवी की बात को उन्होंने मान लिया है। उनका स्वयं का कुछ लोग हैं, जो इसलिए मान लेते हैं किसी की बात को, हृदय तो कह रहा था, सुख है। उस हृदय को तो इनकारा, क्योंकि और लोग उसकी बात को मानते हैं। अगर जीसस को अस्वीकार किया; किसी और को आरोपित कर लिया। अपने एक अरब आदमी मानते हैं तो कुछ तो इसीलिए मान लेंगे कि प्राणों की आवाज तो न सुनी; किसी और की आवाज पर चल | जिसको एक अरब मानते हैं, वह गलत कैसे हो सकता है? पड़े। फिर उनका जीवन बड़े दुख से भर जाता है। क्योंकि जहां | लेकिन ध्यान रखना, यह भी संभव है कि एक अरब जिसे उन्हें सुख दिखाई पड़ता था, वहां उन्हें अब भी दिखाई पड़ेगा। मानते हों वह तुम्हारे लिए न हो। वह एक अरब के लिए भी सही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340120
Book TitleJinsutra Lecture 20 Palkan Pag Ponchu Aaj Piya ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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